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________________ ८४ गुणधर्मों से युक्त है', ऐसी बात जो जैन तत्वनान ने वताई है सो भी उन्हें स्वीकार करनी ही होगी। जैन दार्गनिको का तो यह कहना है कि 'ब्रह्म' यदि वेदान्त के कहने के अनुसार शुद्ध तत्व हो, तो उसमे से 'माया पा तत्व' जो अगुद्ध माना जाता है, उसकी उत्पत्ति ही न होती । इसलिये या तो 'ब्रह्म' केवल शुद्ध स्वरूप न था अथवा 'यदि वह शुद्ध स्वन्प था तो उससे माया की उत्पत्ति नही हुई' ये दोनो वाने हमारी समझ में आ जाएँगी। 'ब्रह्म और माया' के आपनी लम्बन्ध को जिस तरह ब्रह्मयादी वेदान्ती समझाते है वह अयुक्त है' ऐमा प्रमाणित करना पूर्ण तर्कमगत एव न्याययुक्त है। अनेकातवाद की इस बात को अव हम कुछ मामान्य स्तर पर ले जाते है । इस बात को याद रखें कि यह स्तर अनेकानदाद का नहीं बल्कि हमारी बुद्धि का है। एक मिस्टर जोन्ग नाम के मनुष्य की हम कल्पना कर नगर नगरनात् उसके सम्बन्ध मे कुछ जांच-पटतान करे। मनुष्य तो एक ही है लेकिन वह अच्छा भी है और नाथ-गाय युग भी । वह दयालु है और साथ-साथ कर भी, आ भी है और मागीचूग भी। क्षमाशील भी है और जादी गो, प्रतिमा भी, और हिमक भी, मत्यवक्ता भी गगर बोलने वाला भी है, सजन भी है और दुर्जन भी, टोटा भी है और बा भी, वाचाल है पीर धुन्ना भी, गनी भी है और माय ही नाथ अनानी भी।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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