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________________ 70 विदेशों में जैन धर्म है कि पूर्वावस्था मे वह मडूक का पुजारी था, परन्तु उत्तरावस्था में पुत्र की दीक्षा के बाद भारत आने पर उसने जैन धर्म स्वीकार कर लिया था और जीवन भर उसने जैन धर्म का प्रचार किया। उत्तर यय में नेबुचन्द्रनेजर ने बेबीलन में नौ फुट ऊंची तथा नौ फुट चौड़ी एक स्वर्ण प्रतिमा का निर्माण कराया था और उसी समय उसने अपने बनवाये हुए इस मुख्य पूजन मन्दिर मे एक मूर्ति के समीप सर्प तथा दूसरी के समीप सिंह का बिम्ब बनवाया था तथा उसके द्वारा निर्माण कराये गये इस्टार के दरवाजे का कुछ भाग टूट जाने से, जिसके टुकड़े बर्लिन और कोस्टेंटीनोपल के म्यूजियमो मे सुरक्षित रखे हए है, उनका जो भाग अब भी वहां मौजूद है, उस पर वृषभ (बैल), गेडा, सुअर, साप, सिह, बाज इत्यादि खुदे हुए दिखलाई देते हैं।32 | ये सब जैन तीर्थकरों के प्रतीक-चिहन (लांछन) है। (वृषभ ऋषभदेव का, गेंडा श्रेयांसनाथ का, सुअर विमलनाथ का, बाज अनन्तनाथ का, साप पार्श्वनाथ का और सिह महावीर का प्रतीक (लाछन) है जो जैनो के क्रमश प्रथम, ग्यारहवें. तरहवे, चौदहवें, तेईसवें और चौबीसवे तीर्थकरो के लांछन है।) बाज मन्दिर की मूर्तिया बेबीलन के पुराणों में अथवा पुरानी बाइबिल में वर्णित देवो मे से किसी से भी कोई मेल नही खाती। 33 (यह बाज मन्दिर जैनो के चौदहवे तीर्थकर अनन्तनाथ का होना चाहिए, क्योंकि बाज अनन्तनाथ का लांछन है।) वस्तु स्थिति यह थी कि नेबुचद्रनेजर ने जैन धर्म को स्वीकार कर लिया था। Epic of Creation (बेबीलन का महाकाव्य) मे बेबीलन का एक राजकुमार अपने एक मित्र के सहयोग से स्वर्ग में पहुंचने का प्रयास करता है किन्तु अध बीच में ही सरक पडता है ऐसा वर्णन मिलता है। यह रूपक जैन वाङ्मय मे अभय कुमार की प्रेरणा से आर्यावर्त (भारत) में पहुंचकर दीक्षा लेने की आर्द्र कुमार की भावना तथा बाद में दीक्षा-त्याग करने के कथानक से मेल खाता है। बेबीलोन का भारत के साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध तो ईसा पूर्व पच्चीस सौ वर्ष से था. ऐसा इतिहासकार मानते हैं। हम्मुरावी के कानूनी ग्रंथ पर भी भारतीय न्यायप्रथा का सम्पूर्ण प्रभाव है। प्राचीन प्रवासियों के विवरणों से भी ज्ञात होता है कि भडौच और सोपारा के बन्दरगाहों के द्वारा बेबीलान
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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