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________________ 48 विदेशों में जैन धर्म के साथ उनके महत्त्वपूर्ण सवाद हुए। विविध तीर्थकल्प26 (वि. 14 शतक) के अनुसार, तथा आचार्य हेमचन्द्र (परिशिष्ट पर्व) के अनुसार. सम्राट् सम्प्रति (ईसा पूर्व 232 से 190) ने अर्ध भारत पर अर्थात भरतवर्ष के तीन खंडों पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया था। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार, भरतवर्ष के दो विभाग हैं - दक्षिण भरत और उत्तर भरत । इनका विभाजन "वैयड्ढ पर्वत" (विजयार्ध पर्वत) के द्वारा होता है। इन दोनों के तीन-तीन खण्ड है28 | वस्तुतः हिन्दूकुश, सुलेमान आदि वैयड्ढ पर्वत हैं29| उसके दक्षिण पूर्व३० में बृहत्तर भारत के तीन खण्ड (अविभक्त हिन्दुस्तान) है तथा शेष तीन खण्ड उत्तर पश्चिम और उत्तर पूर्व में हैं। मौर्य सम्राट सम्प्रति का दक्षिण भारत के तीन खण्डो पर प्रभुत्व स्थापित था (जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति)। उसके राज्य की सीमा वैताढ्य पर्वत (अराकान पर्वतमाला तथा हिन्दूकुश पर्वत श्रेणी) तक थी (आचार्य हेमचन्द्र तथा वसुदेव हिण्डी)। सम्पूर्ण बृहत्तर भारत मे जैनधर्म और जैन सस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार था। सिहल, बर्बर (बेबीलोनिया), अगलोय, बलख (बलाया लोय), यवनद्वीप, आरबक (अरब प्रदेश), रोमक (रोम), अलसण्ड (अल्लसन्द-सिकन्दरिया), पिकरपुर, कालमुख और योन (यूनान) आदि प्रागैतिहासिक काल मे उत्तर भारत के अंतर्गत आते थे जिनमें जैन संस्कृति की व्यापक प्रभावना थी। इसी प्रकार, बर्मा, लंका, मलाया, श्याम, कम्बोडिया, अनाम, जावा, बाली और बोर्नियो से सुदूरपूर्व के देश भी श्रमण संस्कृति के अंगभूत थे तथा भारत से सम्बद्ध थे। काशगर से चीन की सीमा तक, पूर्वी तुर्किस्तान के दक्षिणी प्रदेश-शौलदेश (काशगर), चोक्कुक (यारकन्द), खोतम्न (खोतान), चलन्द (शानशान) तथा उत्तरी प्रदेश-कुचि (कचार) और अग्निदेश (कराशहर) भी श्रमण सस्कृति से प्रभावित थे। इनमें खोतम्न और कुचि श्रमण भारत से विशेषतया सम्बद्ध . . थे।
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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