SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विदेशों में जैन धर्म 27 जैना द्वीप के पुरातात्त्विक अवशेष और पुरावस्तुयें भी यही प्रमाणित करती हैं। भारी भूकम्पों मे, प्रशान्त महासागर में लुप्त हुए लिमूरिया महाद्वीप तथा अतलान्तिक महासागर में लुप्त हुए एटलान्टा महाद्वीप भी इसी बात को प्रमाणित करते है तथा सुप्रसिद्ध ग्रीक इतिहासकार हेरोडेटस ने भी इसी तथ्य का प्रमाणन किया है। जैन तीर्थंकर नेमि की जन्मभूमि मिथिला के नाम पर अमेरिका मे राजधानी बनने का प्रमाण मिलता है। . शताब्दियों तक सारे ससार मे व्यापार के साथ-साथ इन पणि व्यापारियों ने ऋषभ प्रवर्तित श्रमण धर्म का मैसोपोटामिया, मिश्र, अमेरिका, सुमेर, युनान, उत्तरी अफ्रीका, भूमध्य सागर, उत्तरी एशिया तथा यूरोप में व्यापक प्रचार-प्रसार किया । लगभग 4000 ईसा पूर्व मे जैन पणि व्यापारियो का उपर्युक्त व्यापार साम्राज्य चरमोत्कर्ष पर था। प्राचीन कैस्पियाना, आर्मेनिया, अजर्बेजान आदि समस्त रूसी क्षेत्र में पणि व्यापारियो का प्रसार था । सोवियत रूस में सराज्म नामक स्थान की हाल ही की खुदाई से भी यही बात प्रमाणित होती है। इस क्षेत्र में ग्यारहवी शती में ही ईसाई धर्म का प्रचार आरम्भ हुआ तथा इससे पूर्व तक इस क्षेत्र मे प्राचीन संस्कृति ही विद्यमान रही तथा श्रमण धर्म फैला रहा। सोवियत रूस में ईसाई धर्म के प्रचार की प्रथम सहस्राब्दि भी हाल ही में मनाई गई। अध्याय 6 फिनलैण्ड, एस्टोनिया, लटविया एवं लिथुआनिया इन देशों के इतिहासकारो और बुद्धिजीवियां की खोजों के अनुसार, उनकी सस्कृति का स्रोत भारत था और उनके पूर्वज भारत से जाकर वहां बसे थे जिनमे जैन श्रमण एव जैन पणि व्यापारी आदि बड़ी संख्या में थें। उनके यहां संस्कृत एवं ऋग्वेद की बातें भी प्रचलित थी। उनके यहां सती प्रथा भी थी । वस्तुतः उनके पूर्वज गंगा के इलको से जाकर वहां बसे थे। लटविया के प्रमुख लेखक पादरी मलबरगीस ने 1856 में लिखा हैं कि लटविया, एस्टोनियां, लिथुएनियां और फिनलैण्ड वासियों के पूर्वज भारत से जाकर वहां बस गये थे। इनमें अधिकांश पणि व्यापारी थे जो जैन
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy