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________________ वर्षमें चारवेलने जैन सन्यासियों के लिये कुमारीमिति पर ११७ . गुफायें तैयार कराई थी, और साथ साथ दूसरे प्रसिबलाई के साधु और सन्यासियोंके लिये बी (सकल-समम-सुविहिला) एक दूसरी गुफा निर्माण किया था। फिर भी अन्यान्य मुनि ऋषि और प्रमणों के लिए सभी प्रबन्ध किया था। यह बात शिलालिपिमें अस्ति है। (शत विसाकम् यदिकम् तापस इसिकम् लेयेन कारयति)। यहां यति, ऋषि और साधुनों का उल्लेख करने से हिन्दुनों के वर्णाश्रम धर्मगत वानप्रस्थ अवस्था की सूचना अनुमानित होती है। मशोककी शिवालिपि मादि में ब्राह्मण धर्मके योगी ऋषिमो से पृथक प्रगट करने के लिए जैन, माजीवक और बौदोंका श्रमण नामसे अभिहित किया गया है । लेकिन खारवेलने ब्राह्मण सन्यासियो को यती, ऋषि , और तापस नामसे अभिहित किया है। बौद्ध और भाजीवक लोगों को हाथीगुफा शिलालेखकी वर्णनामें स्थान नही दिया गया है । पर इसका कारण निर्णय करना असंभव है। शिलालेख की सोलहवी पक्तिमें खारवेलकी धर्मनीति विश्लेषित हुई है। इस धर्मनीतिको विशद मालोचनाके लिए शिलालेखका प्रोक्त भाग पर विशेष ध्यान देना प्रावश्यक है। ___ "मेरा बास वषराज बास हररावास अमरावास बसते सुनते अनुभक्तो कलालाण गुणविसेस कुसलो सबपापाड पूमोको सब-वायतम-संकार-कारको प्रपतिहत बकवाहमबलो पपरो गुत चको पति को राजिषिवसुकुल विनिसितो महाधिवबो राणा सारवेल सिरि।" (हाथीगुंफा शिलालेख- १६ वी पंक्ति) समालोचनाके लिए जिसका सस्कृत अनुवाद नीचे दियागया है. *- जैन श्रमणों में भी यति, ऋषि पौर सापो का वर्गीकरण मिलता है।
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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