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________________ का पता पासानी से मिल जाता है। देदों की चामो में मादिनाब ऋषभदेव का नाम प्राप्त होता है। यद्यपि कोई कोई इसे प्रक्षिप्त बताते है।हो मी यह स्पष्ट है किवादको अब पायन व्यास ने वेदोंका संकलन किया तब उन्होंने देवों में इस बातको बोड़ दिया होगा। मास कुरुक्षेत्र युद्ध के समय यानी ईसा से पहले बारहवीं सदी में थे, इससे सिख होता है कि ग्यास जब वेदों का सम्मान करने लगे थे तब तक ऋषभ देव भगवान के रूपमें स्वीकृत या ग्रहीय हो चुके थे यह मान मेना पड़ेगा। इसके बारे में लोकमान्य तिलकमी गीतारहस्यकी मालोचना मोर अनुशासन प्रपिधान-योग्य है.. जैनी धर्मग्रन्थोंमें प्रादिनाथ ऋषभदेव के बारेमें कुछ ऐसे विषय है जिनमें एक देशदर्शिता है। उन्होने ऊसका माविष्कार किया था और लोगोंको पशुपालन और खेतीकी शिक्षा ही पी. आदि विषयोंका उल्लेख है, हां, उस समय 'भारतवर्ष' ऐसा नाम नहीं हुमा था, क्योकि तबतक भरत राषा नहीं बने थे ऋषभके पुत्र भरतके नामसे देशका नाम 'भारत' मा। लेकिन उनसे पहले इक्ष्वाकुवशी राजा (जसके बाविकारक वंशके) हो गयेथे पोर देशमें खेतीका नाम पसातापा। सोपा भी करते थे, स्वयं ऋषभदेव पुत्रेष्टिया के 7- Prshistoric India-Stnart Piggott-PP.132-213. -अग्वेद में दिगम्बर साधुओं की चर्चा है। देव यमल इ. १० ११६. इसमें बिम्पर साधुमों के नेता केशीकी प्रशंसा है। इस केशको वर्णना भागवत के अपमदेव की वर्णनासे करीबी मिलती है। १- बीतारहस्य-बालगंगाधर तिलक कुछ (भूमिका लिये।) १०-भववाह रचित कल्पसूम में समरेवकी षषिक शिक्षामों का उस्लेख है। पहले मोग कल्पवृक्ष से बना पाते थे । Wilson's farygon Page-102, Jaopbi in I. Antiquary IXPage-103. Mabavina and his Predecedora. - -
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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