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________________ हुए। उसके बाद कलकत्ता में शिवपुर इनजिनियरिंग कालेज में दो वर्ष ही पढ़ पाए कि प्रर्थाभावके करण छोड़कर चले भाए । उपरान्त शिक्षा व्यवसाय उनको रुचिकर हुआा । वह पुरी विक्टोरिया होटल में मैनेजर हये और फिर कटक मिशन स्कूलमें चार वर्षो तक शिक्षक रहे। वहां से उन्होंने बी० ए० प्रोर संस्कृत मध्यमा प्रादि पास किए। गीता में उनको 'तत्वनिधि' उपाधि और बगला साहित्यमे दक्षता के लिए 'विद्यारत्न' उपाधिभी मिली। मिशन स्कूल छोड़कर उन्होने भारत सेवक समितिमें योग दान देनेके लिए अपना जीवन अर्पण कर दिया । प्राजकल भी उस समिति सदस्य है और उसका काम करते है । अब उस समितिका नाम परिवर्तन होकर " हिन्द सेवक समाज " हुआ है । बालकपन से ही वह समाज सेवामे मस्त थे और एक धर्मिष्ट हिन्दूकी तरह निष्ठाके साथ जीवन विताते थे । गणेश, सरस्वती, कार्तिक, आदि सव देवताओ की मूर्तिपूजा करते थे । प्रकस्मात् उनके जीवन में परिवर्तन हुम्रा वह जीव मात्रकी सेवा करने मे लगे । भगी गांवमें सबके साथ मिलते और रोगी भगी बच्चोमी अपने पुत्रके समान देखते थे । कटकमें मुसलमान लोगोवे साथ मिलते थे और इसके बाद श्रार्य समाजमे हवन प्रादि करते थे ईसाइयो से भी परिचित थे । इसप्रकार वह यौवनको झोर एक समुदार दृष्टि लेकर बढ़े थे । वहुत क्या कहे ? लक्ष्मीनारायण बाबू एक कवि, एक साहित्यकार और एक समाज सेवक हैं। अपने जीवनमें उन्होंने साठ अमूल्य ग्रंथोंकी रचना की है, जो अग्रजी, उडिया और बगला भाषाओ में है । हिन्दीमें उनकी यह पहली पुस्तक है, जिसे वह अपने मित्रोंके सहयोग से अनूदित कर सके हैं। किंतु साहित्यकार होनेके साथ ही उनका हृदय दया और धनुकम्पा से परिप्लावित है । यही कारण है कि उन्होने कुष्ठ रोगियोंकी . -क्र
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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