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________________ XI / तस्वार्थसूत्र-निक विश्वविद्यालय, उज्जैन ने पधारकर सम्पूर्ण आयोजन को जो गरिमा और अर्थवत्ता प्रदान की, उसके लिये मैं उपर्युक् मनीषियों के प्रति बहुत - बहुत आभारी हूँ । सर्वोदय विद्वत् संगोष्ठी के समापन सत्र में समाज के मंत्री श्री पवन जैन ने समाज के इस संकल्प की घोषणा की कि 'फिरोजाबाद में सम्पन्न प्रथम संगोष्ठी सहित सतना संगोष्ठी के निष्कर्षो को सतना समाज प्रकाशित करायेगी' का सभी ने स्वागत किया था। यह एक बड़ा भारी उत्तरदायित्व था, जिसे सतना जैन समाज ने अंगीकार करते हुए उसके प्रबन्धन का भार मुझे और भाई सिद्धार्थ जी को सौंपा। प्रस्तुत तत्त्वार्थसूत्र- निकष वस्तुत: आदरणीय ब्रह्मचारी श्री राकेश भैया जी के अथक श्रम का ही प्रतिफल है। सम्माननीय प्राचार्य श्री निहालचन्द जी बीना के साथ राकेश भैया जी ने इसे संयोजित किया, मुद्रण की त्रुटियों को परिमार्जित किया और सजा-संवारकर इसे संग्रहणीय रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत किया है । दिगम्बर जैन समाज सतना की ओर से मैं उनके प्रति प्रणति निवेदित करता हूँ । देश के शीर्षस्थ विद्वानों ने अपना बहुमूल्य समय प्रदान कर संगोष्ठी में अपनी उपस्थिति अंकित की । उन्होंने तत्वार्थ सूत्र के अगाध सिन्धु में गोते लगाकर जिन मणि मुक्ताओं को समेटा, उन्हें कागज में अपने गहन चिन्तन सहित अंकित कर संगोष्ठी मे उनका वाचन किया था। विद्वान् संपादक द्वय ने प्राप्त आलेखों में से सर्वश्रेष्ठ आलेखों को आपके ,चिन्तन और मनन के लिए इसे पुष्पगुच्छ के रूप में प्रस्तुत किया है। परम पूज्य मुनिराज श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज की सारगर्भित टिप्पणियों ने इस पुष्पगुच्छ को और और सुवासित किया है। अध्ययन, हमें विश्वास है कि सुधी विद्वद्गणों के गहन चिन्तन से मंडित यह तत्त्वार्थसूत्र निकष सर्वसाधारण के लिये अमृतपेय जैसा तो होगा ही, जिनवाणी की सेवा में रत समस्त त्यागी - व्रतियों और महाव्रतियों के बीच भी आदरणीय और सग्रहणीय ग्रन्थ के रूप में स्थान प्राप्त करेगा । सन्दर्भग्रन्थ के रूप में इसे उद्धृत किया जायेगा, मैं ऐसा भी विश्वास करता हूँ, मुझे अपनी अल्पज्ञता का भान है। अपनी क्षमताओं से भी मैं अनजान नहीं, इसलिये इस तत्त्वार्थसूत्र निकष में आपको जहाँ कहीं कुछ विशृंखलित/विसंयोजित लगे उस सबकी जिम्मेदारी मेरी। फूल-फूल आप चुनें, कॉटों पर हक मेरा है। और अन्त में, परम पूज्य गुरुदेव श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज को त्रैकालिक नमोऽस्तु की, जिनकी कृपा के बिना यह सब कुछ होना दुष्कर था, सहित देवाधिदेव श्री 1008 नेमिनाथ स्वामी के श्री चरणों में कोटि-कोटि नमन करते हुये इस कृति को प्रभु के श्री चरणों में अर्पित करता हूँ, इस भावना के साथ कि - 'तेरा तुझको सौंपिया क्या रखा है मोय' सिंघई जयकुमार जैन, अमरपाटन वाले संयोजक - नेमिनाथ महोत्सव एवं सर्वोदय विद्वत् संगोष्ठी (मे. अनुराग ट्रेडर्स, सतना)
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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