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________________ शान्तिनाथ जिनस्तवन रचयिता : पं. शिवचरणलाल जैन, मैनपुरी समयतत्वदर्पणं विमुक्तिमार्गघोषणम् । कपायमोहमोचनं, नमामि शान्तिजिनवरम् 112॥ नमामि ...... सम्पूर्ण पदार्थों को दर्पण के समान प्रकाशित करने वाले. मोक्षमार्ग के प्रणेता एव मिथ्यात्व व समस्त कपाय एक माह के नाशक श्री शान्तिनाध जिनेन्द्र को मैं नमस्कार करता हूँ। त्रिलोकवन्यभूषणं भवाम्धिनीरशोषणम । जितेन्द्रियं अजं जिनं, नमामि शान्तिजिनवरम् ॥२॥ नमामि ...... जो त्रिलोक पूज्य और विश्व के आभूषण है, जो संसार रूपी मागर के जल को सुखाने वाले है अर्थात पगार - समुद्र से पार उताग्न बाले है, इन्द्रियविजयी, आगे जन्म-धारण नहीं करने वाले और कर्मशत्रुओ के विजेता है उन शान्तिनाथ तीर्थकर प्रभु को में प्रणाम करता हूँ। अखण्डखण्डमुणधरं, प्रचण्डकामखण्डनम् । सुमव्यपनदिनकर, नमामि शान्तिजिनवरम् ।।311 नमामि ...... अखण्ड और खण्ड अर्थात निश्चय व्यवहार रूप से निरूपित किये जाने वाले गुणों के धारक, प्रचण्ट काम का नाश करने वाल तथा भत्र्यनीय मापी कमलों को विकसित, हर्षित करने में सूर्य स्वरूप शान्तिनाथ जिनबर को में नमस्कार करता है। एकान्तवावमतहरं, सुस्याद्वादकौशलम् । मुनीन्द्र-वृन्द-सेवितं, नमामि शान्तिजिनवरम् 1111 नमामि ...... एकान्तवाद रूपी मिथ्यामता के नाशक, म्याद्वाद म्पी वचन कोदाल के धार्ग, श्रेष्ठ मुनियों में गांवत शान्तिनाथ भगवान का में नमन करता है ।। नृपेन्द्रचकमण्डनं, प्रकर्मचक्र पूरणम् । सुधर्मचकचालकं, नमामि शान्तिजिनवरम् ।। ५ ।। नमामि ...... जो श्रेष्ठ राजा-समूह का शोभास्वरूप है, उत्कृष्ट रूप से कर्मों को चकचर करने वाले है, और समीचीन धर्मचक्र के चालक है, उन शान्तिप्रभु का म वन्दन करता हूँ। अन्यन्धनग्नकेवलं, विमोमधामकेसनम् । अनिधनप्रमजनं, नमामि शान्तिजिनवरम् ॥ ॥ नमामि ...... सम्पूर्ण परिग्रह से रहित, नग्न स्वरूप, केवली भगवान मोक्ष-महल के ध्वज स्वरूप तथा अनिष्ट पापरूपी मंधों के लिए प्रचण्ड पचन समान श्री शान्तिनाथ भगवान को प्रणाम हो। महाश्रमणमकिशनं,भकामकामपदधरम् । सुतीर्थकरोडश, नमामि शान्तिजिनवरम् ।।७। नमामि ...... जो श्रमणों में महाश्रमण हैं. महामुनि है, अकिंचन है. निष्काम भाव से कामदेव पद के धारक है. एब जो श्रेष्ठ मोलहब तीथकर है उन शान्तिनाथ जिनवर को मैं प्रणाम करता है। महाजधरं बरं, दयाक्षमागुणाकरम्। सीवानवधरं, नमानि शान्तिजिनवरम् ।। नमामि ...... श्रेष्ठ महाघ्रत धारी, दपा-क्षमा आदि गुणों के भण्डार तथा सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के धारक भगवान शान्तिनाथ को में नमस्कार करता हैं ।।
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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