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________________ तत्वार्थस्न का समाजशास्त्रीय अध्ययन * डॉ. नीलम जैन तत्त्वार्यसूत्रकार आचार्य उमास्वामी तत्त्वचिन्तक मनीषियों में अपना श्रेष्ठ, धुरीय एवं कीर्तनीय स्थान रखते हैं। तत्त्वार्थसूत्र जैनदर्शन की सूत्रात्मक प्रस्तुति मात्र नहीं अपितु जीवन संभारने एवं सामाजिक समरसता की मास्टर की है। मानव सामर्थ्य के अद्भुत ज्ञाता आचार्य उमास्वामी संघर्ष एवं पुरुषार्थ का मार्ग सुझाते हुए व्यष्टि से समष्टि का ऐसे राजमार्ग का उदघोष करते हैं जहाँ जीवन जीवन्त और समाज प्रभावान होकर सद्गुणों का ऐसा इन्द्रधनुष बिखरते हैं जहाँ सबलदुर्बल, धनी-निर्धन, गुरु-लघु, युवा-वृद्ध, महिला-पुरुष सभी परस्पर उपकारी बन समाज एवं श्रद्धास्पद आचरण संहिता का वहन करते हैं । इस कृति की प्रभविष्णुता अद्भुत और अनुपम है । आचार्य प्रवर की जीवन-दृष्टि संतुलित और समन्वय प्रधान होने के कारण इसमें ऐसी विचार-मणियां हैं जो समाज को मर्यादित और अनुशासित रखती हैं। वर्तमान में जब समान में सर्वत्र मूल्यों का क्षरण है, भौतिकता की सर्वग्रासिनी ज्वाला धधक और झुलसा रही है। शोषण, उत्पीड़न, हिसा और द्वेष का क्रीड़ा सामाजिक समरसता को चाट रहा है, जिओ और जीने दो' का स्थान 'मरो और मारो' ने ले लिया है। प्रतिमूल्यों की संस्कृति उग्रतर गति से विभीषिका फैला रही है, जिस हृदय के स्तर पर भावना की निर्मल भागीरथी का प्रवाह है वहाँ उन्माद का बारूद उड़ेला जा रहा है। ____ आचार्य प्रवर श्री उमास्वामी जी सामाजिक और वैयक्तिक हित-साधना को एक-दूसरे से अविभाज्य मानते हैं। सामाजिक एकता, सामाजिक सुव्यवस्था एवं समुन्नति व्यक्ति का विशद व्यक्तित्व है जिसकी छत्रछाया में वह उन्नति कर सकता है, आत्मतृप्ति पा सकता है। समाज व्यक्ति की सीमा का सापेक्ष नि:सीम है। वह बँदों की सम्मिलित शक्ति का समुद्र है, जिसमें मिलकर प्रत्येक बूँद एकत्रित ऐश्वर्य का उपभोग कर सकती है। आज के व्यापक विस्तृत सामाजिक परिवेश भूमि में जो निर्माण-विध्वंस, जय-पराजय, वेदना, पाशविकता, उठा-पटक, के सुनहले विषेले अंकुर उग आए हैं। तत्वार्थसूत्रकार ने अपनी तीक्ष्ण कालजयी चेतना से इन सबके निराकरण के सम्यक् उपाय बताए हैं। उनके आधार पर यदि हम समाज का निर्माण करें तो जीवन चेतना शिखर का प्रकाश मानसिक उपत्यकाओं की छाया को धूमिल कर हृदय सरोवर में ज्ञान-पद्य का अंकुरण कर स्वस्थ सभ्य एवं धर्मनिष्ठ समाज की संस्थापना करेगा। समाज के सुस्थिर ताने बाने में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे गुणों के रंग-बिरंगे फूलों का बुनना अनिवार्य है। आचार्य उमास्वामी का यह सब कितना प्रासंगिक है . * 23/1/1मादर्शनगर, न्यू रेलवे रोड, गुडगाव, 122 002, 9810809727
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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