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________________ तत्वार्थसू-/ इन कारणों के होने से ही असमय में जीव की मौत होती है वह सत्य है कि यदि सोपक्रमायुष्क अर्थात् संख्यातवर्षायुष्क मनुष्य व तिर्यश को उपर्युक्त कारणों में से एक या अधिक कारण मिल जायेगे तो अकाल मरण होगा और उक्त कारणों में कोई भी कारण नहीं जुड़ता है तो अकालमरण नहीं होता है। कारण का कार्य के साथ अन्वय-व्यतिरेक अवश्य पाया जाता है। कारण कार्य सम्बन्ध को बताते हुए आचार्य कहते हैं - "अस्मिन् सत्येव भवति असति तु न भवति तत्तस्य कारणमिति न्यायात्"" को जिसके होने पर ही होता है और जिसके न होने पर नहीं होता, वह उसका कारण होता है ऐसा न्याय है। आचार्य विद्यानन्द ने शस्त्र परिहार आदि बहिरंग कारणों का अपमृत्यु के साथ अन्वयव्यतिरेक बताया है। इससे सिद्ध है कि खड़ा प्रहार आदि से जो मरण होगा वह अकालमरण होगा और इन शस्त्र आदि के अभाव में कदलीघात मरण नहीं होगा । भास्करनन्दि आचार्य भी अपनी सुखबोधनाम्नी टीका में लिखते हैं- "विषशस्मयेवनादिवाह्यविशेषनिमितविशेषणापत्यें हस्वीक्रियते इत्यपवर्त्यः' "" अर्थात् विष, शस्त्र, वेदनादि बाह्य विशेष निमित्तों से आयु का ह्रस्व (कम) करना अपवर्त्य है अर्थात् बाह्य निमित्तों से भुज्यमान आयु की स्थिति कम हो जाती है। इसी सन्दर्भ में आचार्य विद्यानन्दि कहते हैं कि - "न प्राप्तकालस्य मरणाभावः सङ्गप्रहारादिभिः मरणस्य दर्शनात् अप्राप्तकाल अर्थात् जिसका मरणकाल नहीं आया ऐसे जीव के भी मरण का अभाव नहीं है। क्योंकि खड्गप्रहार आदि से मरण देखा जाता है। श्रीश्रुतसागरसूरि ने तत्त्वार्थवृत्ति में अकालमरण की मान्यता की पुष्टि में कहा है। "अन्यपादयाधर्मोपदेशचिकित्साशास्त्रं च व्यर्थं स्यात्" अकालमरण को न मानने से दयाधर्म का उपदेश और चिकित्सा शास्त्र व्यर्थ हो जायेंगे ।" भट्टाकलकदेव ने कहा है- "बाह्य कारणों के कारण आयु का ह्रास होना अपवर्त है, बाह्य उपघात के निमित्त विष शस्त्रादि के कारण आयु वाले हैं और जिनकी आयु का अपवर्त नहीं होता वे अनपवर्त आयु वाले हैं। देव नारकी चरमशरीरी और भोगभूमिया जीव हैं, बाह्य कारणों से इनकी आयु का अपवर्तन नहीं होता है । " शस्त्रादि के बिना संक्लेश परिणामों या परिश्रम आदि के द्वारा भी आयु का ह्रास हो सकता है और वह भी कदलीयात मरण है जैसे किसी की आयु 80 वर्ष है, वह 40 वर्ष का हो चुका। परिश्रम या सक्लेश के कारण उसकी आयु कर्म के निषेक 75 वर्ष की स्थिति वाले रह गये, वह 75 वर्ष में मरण को प्राप्त होता है, तो वह भी अकालमरण ही कहा जायेगा। यदि एक अन्तर्मुहूर्त भी भुज्यमान आयु कम होती है, तो वह अकालमरण ही कहलाता है। यह निश्चित है कि कोई भी जीद आत्मघात करता है, तो वह भी अकालमरण को प्राप्त होता है किन्तु सभी अपवर्तन को प्राप्त होने वाले जानबूझकर अपवर्तन नहीं करते हैं, जैसे आहार निमित्तों से रसादिक रूप स्वयं परिणमन कर जाता है, इसी प्रकार अपवर्तन के सम्बन्ध में जानना चाहिये । १. प्र. पु. 12 पृ. 289 २. अकाल मृत्यु के अभाव में चिकित्सा आदि का प्रयोग किस प्रकार किया जायेगा क्योंकि दुःख के प्रतिकार के समान ही अकालमृत्यु के प्रतिकार के लिए चिकित्सा आदि का प्रयोग किया जाता है। श्लोकवार्तिक, पृ. 343 १. बाह्यप्रत्ययवशायुषो हासोऽपवर्तः । ब्राह्यत्योपयातनिमित्तस्यविवस्वादेः सति सन्निधाने हासोऽपवर्त इत्युच्यते । अपार्थयाांत इमे अपवर्त्यायुचः । नापवर्त्यायुषोऽनपवर्त्यायुच । एते औपपादिकादय उक्ता अनपवर्त्यायुषः न हि तेषामायुषो बाह्यनिमित्तवशादपवर्तोऽस्ति। तस्वार्थवार्तिक भाग 1, पृ. 426.
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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