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________________ सम्यक्चारित्र-चिन्तामणि. निमित्त निश्वयसे मुनि कभी विहार नहीं करते हैं। अन्धकारसे जहाँ मार्ग आच्छन्न-व्याप्त रहता है ऐसो रात्रिमे साधु विहार नही करते । सूर्योदय होनेपर, जिसमे स्थित वस्तुएं दिख गई है, मनुष्य, गाय, घोडा तथा गधा आदिके यातायातसे जो क्षुण्ण-विमर्दित हो गया है एवं जो हरी घास आदिसे व्याप्त नही है ऐसे मार्गमे साधु विहार करते हैं। वे मुनिराज दण्ड-चार हाथ प्रमित भूप्रदेशको देखते हुए चलते हैं, न अत्यन्त धीरे-धोरे चलते हैं और न अत्यन्त शीघ्र। शौचादिक बाधाकी निवृत्तिके लिये यदि रातमे जाना होता है तो दिनमे देखे हुए, पीछीसे परिमार्जित और हाथके पृष्ठ भागसे परोक्षित स्थानमे बाधाको निवृत्ति करते है। वे क्षुद्रजीवोको रक्षाके लिये प्रमाद रहित होकर चलते हैं। साधुओका विहार अच्छी तरह देखे हुए स्थानमे होता है। पैर रखते समय यदि कोई क्षुद्रजीव आकर मर जाय तो साधुको उसके निमित्तसे होनेवाला थोडा भी बन्ध आचार्योने जिनागममे नही बताया है क्योकि बन्धका हेतु प्रमाद हो बताया गया है। साधुओका पैदल विहार हो जिनसम्मत है । अत यात्रादिकके व्याजसे पालकोका आश्रय करनेवाला साधु अपनो र्या समितिको नियमसे खण्डित करता है, इसमे सदेह नहीं है। परमार्थसे मोक्षकी प्राप्ति निर्दोष आचरणसे हो होतो है ॥ ४-१५॥ अब भाषा समितिका स्वरूप कहते है अथात्र क्रियते चर्चा भाषासमितिलक्षणः । योऽसत्य वाक्परित्यागो जातः सत्यमहावते ॥ १६ ॥ रक्षार्थ तस्य भाषायाः समितिः सम्प्रयुज्यते । भाषासमितिसंधारी मुनिराजो निरन्तरम् ॥ १७ ॥ हितां ब्रूते मितां व्रते प्रिया ब्रूते च भारतीम् । तस्य ववनचन्द्रायो निासृतो वचनोच्चयः ।। १८॥ पीयूषनिझर इव श्रोत्रानन्दं ददाति सः। बागेवात्र महीलोकेऽन्योन्यप्रीतिविधायिनी ॥१६॥ काकप्रियरव श्रुत्वा पिकस्य मधुरां कुहम् । उभयोरन्तर वेत्ति भाषाविज्ञानशोभितः ॥ २०॥ सधर्मभिः कृतालापो भाषासमितिधारकः। धर्मपक्ष दृढ़ीकर्त बहूपि वक्ति जातुचित् ॥ २१ ॥ * विशेष-सल्लेखनाके लिये निर्मापकाचार्य के पास पहुंचनेके लिये अशक्ति वश शिविकाका आश्रय लिया जा सकता है।
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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