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________________ ३२ सम्यक्चारित - चिन्तामणि वृक्षसे तोडनैपर वृक्षका जीव तो फलों और पत्तोमें नही रहता परन्तु फल और पत्तोका जीव रहता है उसकी अपेक्षा वे सचित्त माने जाते हैं । सचित्तका त्यागी इन्हे अचित्त कर हो खा सकता है। यदि वृक्षसे तोड लेने पर पत्र आदि अचित्त हो जाते है तो भोगोपभोग परिमाण व्रतके अतिचारोमे जो सचित्त, सचित्तसबन्ध और सचित्त सन्मिश्र अतिचार वतलाये गए है उनको सगति नहीं बैठती। इसी प्रकार अतिथिस वि. भागके अतिचारोमे जो सचित्त निक्षेप और सचित्त विधान अतिचार बतलाये गए है वे भी संगत नही होते ।। २६-३५ ।। आगे स जीवोका वर्णन करते है द्वाप्रभृतयो जीवा गदितास्त्र ससंज्ञिताः । शङ्खशुक्तिकपर्दाद्या द्वीन्द्रियाः सन्ति जन्तवः ॥ ३६ ॥ श्रीन्द्रिया गदिता लोके मत्कुणवृश्चिकादयः । चतुरक्षा मता जीवा मशकामक्षिकादयः ॥ ३७ ॥ पञ्चाक्षा सन्ति लोकेऽस्मिन् नृगवाश्वसुरादयः । सूक्ष्मवादरभवेन स्थावरा द्विविधा मता ॥ ३८ ॥ प्रत्येकास्त्रसजीवास्तु वादरा एव सम्मता । पञ्चेन्द्रियास्तिर्यञ्चश्च संवय संज्ञिप्रभेदतः ॥ ३९ ॥ द्विविधा गविता लोके संज्ञिनो नूसुरादयः । तिर्यक्पञ्चेन्द्रिया लोके त्रिविधाः कथिता जिनेः ॥ ४० ॥ जलस्थलाचारित्वानकगोपतगादयः । आर्यम्लेच्छाख्यभेदेन द्विविधाः सन्ति मानवाः ।। ४१ ।। चतुणिकायमेवत्वाच्चतुर्धाः सन्ति निर्जरा । एतासां जीवजातीनां रक्षणं प्रथम व्रतम् ॥ ४२ ॥ षटकायजीवजातीनां रक्षणाद् बहिरङ्गतः । रागादीनां विभावानां वारणावन्तरङ्गत ।। ४३ ।। महाव्रतं भवेत्साधो हिंसा संज्ञित ध्रुवम् । अथा कथयिष्यामि सत्यं नाम महाव्रतम् ॥ ४४ ॥ अर्थ- द्वीन्द्रिय आदि जीव त्रस कहलाते है। शंख सोप तथा कौडी आदि होन्द्रिय जीव है । खटमल तथा विच्छू आदि जोव लोकमें त्रीन्द्रिय कहे गये है। मशक तथा मक्खी आदि चतुरिन्द्रिय जीव माने गये है और मनुष्य, गाय, घोडा तथा देव आदि इस संसार में पञ्चेन्द्रिय हैं । सूक्ष्म और बादरके भेदसे स्थावर जीव दो प्रकारके माने गये हैं परन्तु प्रत्येक
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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