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________________ वयोदश प्रकार होती है, मिथ्यादृष्टि में उसकी अनहंता-अयोग्यता या अपात्रता है ।। २-५॥ आगे उपशामनाका लक्षण तथा उसके भेद बताते हैं उपयों लग्विाहतुं प्रतिबन्धककर्मणाम् । नियोगेन भवत्येव बिधिरत्रोपशामना ॥६॥ प्रकृत्याविधिमेदेन चतुर्षा सा च सम्पता। आदिमाष्टकषायाणामुण्याभाव एव हि ॥७॥ संयमासंयमप्राप्तो प्रकृत्युपशमो मतः। यपि वर्तते चात्र प्रत्याख्यानावृतेस्तथा ॥८॥ सज्जवलनास्य मोहस्य प्रकृतीनां च सन्तनेः। नवाना नोकषायाणामुक्योऽपि यषाविधि ॥९॥ तथाप्यत्र न कर्तृत्वं देशचारित्रधातने । किञ्चिति वर्तते तेषां देशघातित्वहेतुतः ॥१०॥ प्रत्याख्यानावतेरस्ति यद्यपि सर्वघातिता। तयापि देशवत्तस्य धातने देशवातिता ॥११॥ तत्सत्यप्युदये तस्य न वाधा सत्र वर्तते। सज्वलनाकषायास्तु सन्त्येव देशघातिनः ॥ १२॥ अर्थ-चारित्रलब्धि और देशचारित्र-दोनों लब्धियोंको प्राप्त करनेके लिये नियमसे प्रतिबन्धक कर्मोको उपशामना विधि होती है । प्रकृति आदिके भेदसे वह उपशामना चार प्रकारको मानी गई है। अर्थात् प्रकृति-उपशामना, स्थिति-उपशामना, अनुभाग-उपशामना और प्रदेश-उपशामनाके भेदसे उपशामनाके चार भेद हैं । __ संयमा-संयमको प्राप्तिमें आदिके आठ कषाय-अनन्तानुबन्धी चतुष्क और अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका उदय नही रहना प्रकृत्युपशामना मानी गई है । यद्यपि यहा प्रत्याख्यानावरण चतुष्क, संज्वलन चतुष्क और नोकषायोका यथाविधि उदय रहता है तथापि देशचारित्रके घातनेमे उनका कुछ भी कर्तृत्व नहीं है। क्योकि वे देशचारित्रके घातने में देशवाति रहते हैं। यद्यपि प्रत्याख्यानावरण सर्वपाति प्रकृति है तथापि देश-सयमके घातनेमे उसे देशवाति माना जाता है। इसलिये उसका उदय रहते हुए भो देश-संयममे बाधा नही आतो। संज्वलन कषाय चतुष्क और नोकषाय नवक तो देशघाति हैं हो॥६-१२॥
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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