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________________ द्वादश प्रकाश १९५ चोरो, कुशील और द्विविध-चेतन-अचेतन परिग्रह राशिसे एकदेश विरक्त हो देशचारित्रको प्राप्त होता है ।। ३-५ ॥ आगे पाँच अणुव्रतोका स्वरूप निर्देश करते हैं अहिंसाविप्रभेदेनाणवतं पञ्चधामतम् । निवृत्तिस्त्रसहिसातोऽहिसाणुव्रतमुच्यते ॥६॥ संकल्पाद् विहिता हिंसा भविनां भववर्धनी। एतत्प्रभावतो जीवा जायन्ते श्वनभूमिषु ।। ७ ।। आरम्माज्जायते हिसा या च युद्धाप्राजयते। उधमाद या समुत्पन्ना तासां त्यागो न वर्तते ॥८॥ यथायथोचमायान्ति प्रतिमादिविधानतः। तथा तथा परित्याग आसां हि सम्भवेन्नणाम् ॥ ९ ॥ स्थलानतवचनानां त्यागो यत्र विधीयते। सत्याणव्रतमेतत्स्यात्पुंसां सद्धर्मशालिनाम् ॥१०॥ स्थूलस्तेयाख्य पापाद या विरति पुण्यशोभिनाम् । अचौर्याणुव्रतं ज्ञेय तदेतत्सौख्यकारणम् ॥११॥ धर्मेण परिणीतायाः पत्न्या सम्बन्धमन्तरा। अन्यस्त्रीसङ्ग सन्त्यागो ब्रह्मचर्य भवेत्तु तत् ।। १२॥ धनधान्याविवस्तूनां चेतनाचेतनाक्ताम् । यो देशेन परित्यागः सोऽपरिग्रहसंज्ञकम् ॥ १३॥ अणवत परिशेयं जनसोजन्यकारणम्।। वस्तुतो वर्धमानेच्छा जनानां दुःखकारणम् ।। १४ ।। अर्थ- अहिंसा आदिके भेदसे अणुव्रत पांच प्रकारका माना गया है। त्रसहिंसासे निवृत्ति होना अहिंसाणुव्रत कहलाता है। संकल्पासे की गई हिंसा ससारी जीवोके ससारको बढानेवाली है । इसके प्रभावसे जोव नरककी पृथिवियोमे उत्पन्न होते हैं। आरम्भसे, युद्धसे और उद्योग से जो हिंसाये होती है उनका प्रारम्भमे त्याग नहीं होता। प्रतिमा आदिके विधानसे मनुष्य जैसे-जैसे ऊपर आते जाते है वैसे-वैसे हो उनका त्याग सम्भव होता जाता है। स्थूल असत्य वचनोका जिसमे त्याग किया जाता है वह समोचोन धर्मसे सुशोभित पुरुषोका सत्याणु व्रत है । स्थूल चोरो नामक पापसे पुण्यशाली मनुष्योको जो निवृत्ति है उसे अचौर्याणुव्रत जानना चाहिए। यह सुखका कारण है। धर्मपूर्वक विवाहो गई स्त्रोके सम्बन्धको छोड़कर अन्य सित्रयोके समागमका
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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