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________________ १३६ सम्यक्चारित्र-चिन्तामणि जमोन पर शयन करो। दो माह, तीन माह अथवा चार माहमें नियमसे अपने हाथोसे केश लोच करो। तुम्हे गणिनोके साथ सुरक्षित स्थानमे निवास करना चाहिये । चर्या-आहारके लिये नगर अथवा ग्राममे अन्य आयिकाओके साथ श्रावकोके घर जाना चाहिये। कभो भो और कही भी अकेलो विहार नहीं करना चाहिये, आचार्योंके पास भी अकेली नहो जाना चाहिये । गणिनो या अन्य दो तीन आयिकाओके साथ जाना चाहिये । विनयसे सात हाथ दूर बैठकर अन्य साधुओके साथ प्रश्नोतर करना चाहिये। विकथा करनेके लिये गहस्थ स्त्रियोका सपर्क नही करना चाहिये। जिन वाणोके अभ्यासमे समय व्यतीत करना चाहिये । समय पर सामायिक और समय पर स्वाध्याय करना चाहिये। विहार के समय पैदल यात्रा हो करना चाहिये। सवारीका आश्रय कभी नहीं करना चाहिये। शोतकालमे अग्नि का तापना और ग्रीष्मकालमे पानोका सोचना नहीं करना चाहिये और चलते समय पादत्राण नही रखना चाहिये। आप लोगोके सामने मैने यह आर्यिकाके व्रतका वर्णन किया है॥ १८-२६।। आगे क्षल्लिकाके व्रतका वर्णन करते है एतस्य धारणे शक्तिनंचेद् वो वर्तते क्वचित् । शाटिकोपरि सन्चार्य एकोत्तरपटस्ततः ।। ३० ।। आयिकाणा व्रतं नूनं तुल्यमस्ति महावतः । अतस्ताः योग्यमानेन प्रतिग्राह्याः सुवातृभि ॥ ३१ ॥ क्षुल्लिकाणा वत किन्तूत्तमश्रावकसन्निभम् । गुणस्थान तु विज्ञेयं पञ्चम द्विकयोरपि ।। ३२ ॥ अर्थ--इस आयिका व्रतके धारण करनेमे यदि कहो तुम्हारो शक्ति नही हो तो धोतोके ऊपर एक चादर धारण किया जा सकता है। सचमुच आर्यिकाका व्रत महाव्रतोके तुल्य है अर्थात् उपचारसे महाव्रत कहा जाता है। अत दान-दाताओ को उन्हे उनके पदके योग्य सन्मानसे पडिगाहना चाहिये। क्षुल्लिकाओका व्रत उत्तम श्रावक-ग्यारहवी प्रतिमाके धारकके समान है। आयिका और क्षुल्लिका दोनोके पञ्चम गुणस्थान जानना चाहिये ।। ३०-३२ ॥ आगे श्री गुरुकी वाणी सुनकर उन स्त्रियोने क्या किया, यह कहते हैं इत्थमाचार्य वक्त्रंन्दु नि स्मृता वचनावलीम् । सुधाधारायमाणा तां पीत्वाह्याप्यायिताश्चिरम् ॥३३॥
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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