SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । १३ ) अष्टम अध्यायमें बारह भावनामोका सुन्दर चित्रण है, जो विशद है और श्रावक एवं साधुओंके लिये उपयोगी पाठ है। नवम अध्यायमे ध्यानका वर्णन है। दसर्वेमें आयिकाओंके लिए विधि-विधान हैं। ग्यारहवेंमें सल्लेखनाका विधिवत् वर्णन है। __ गहस्थाचार (देशव्रत) का वर्णन १२वें प्रकाशमें किया गया है, जो अति संक्षेप रूप है। गृहस्थाचारका विशेष वर्णन होना चाहिये था, क्योंकि गृहस्थोंके लिए प्रतिपादित सभी ग्रन्थोमें प्राय १२ व्रत, उनके अतिचार और ११ प्रतिमाओका संक्षिप्त विवरण हो पाया जाता है। इसका कुछ विशद वर्णन सागार-धर्मामृत और धर्मसंग्रह श्रावकाचारमे अवश्य है। आजको आवश्यकता है कि गृहस्पके लिए गृहस्थाचारका विशद वर्णन किया जाय । इससे गृहस्थोका जो अज्ञान शिथिलाचार या अनाचार है, वह दूर होगा। दूसरे वर्तमानके बदले हुए जमानेमे गहस्थ अपना धर्म कैसे पालें, उसे मार्गदर्शन मिलेगा। डॉ. पन्नालालजोसे मेरा अनुरोध है कि वे गृहस्थाचारका विशद वर्णन करने वालो एक पुस्तक अलगसे लिख देवे। तेरहवें प्रकाशमे संयमासंयम-लब्धिका सक्षिप्त वर्णन है । इस प्रकार यह ग्रन्थ १३ प्रकाशो ( अध्यायो) में समाप्त हुआ है। अन्तमे परिशिष्ट जोड़ा गया है। इसमे वे विषय निबद्ध है, जो यथास्थान वर्णनमें छूट गए हैं या जिनका विशद वर्णन या स्पष्टीकरण आवश्यक समझा गया। डॉ० श्री पं० पन्नालालजो साहित्याचार्यका यह प्रयत्न और परिश्रम सफल होगा और पाठक इसे पढ़कर लाभ उठावेंगे इस आशाके साथ विराम लेता हूँ। नगन्मोहनलाल शास्त्री श्री महावीर उदासीन आश्रम कुण्डलगिरि सिद्धक्षेत्र पो० कुण्डलपूर (दमोह ), म.प्र. ७-१०-१९८८
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy