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________________ । १२ ) पद्धतिसे परम्पराका नाश हो रहा है और अनर्थ बढ़ रहे हैं । इस पर अंकुश लगे बिना शिथिलाचार दूर न होगा। श्वेताम्बर परम्पराके आचार-ग्रन्थोमे भी ऐसा उल्लेख है कि आर्या ( साध्वी) सौ वर्षको उम्रको हो, उसके समस्त अंग कुष्ठरोग द्वारा गलित हो चुके हो तो भी साधुको उससे एकान्तमे बात भी न करना चाहिये। इस शिथिलाचारकी बढती हुई प्रवृत्तिसे अनेक साधु कूलरहोटर, पालकी, वाहन आदिका भी उपयोग करने लगे हैं जो सर्वदा विपरीत है। इसका अन्त कहाँ होगा, यह चिन्तनीय हो गया है। साधुओ व आयिकाओको बिना पादत्राणके पैदल ही विहार करने की आज्ञा है ईर्यासिमितिका पालन करते हुए, परन्तु पालकोका उपयोग करने वालेकी ईर्यासमिति कैसे सधेगी? इसपर भी चतुर्थ अध्यायके श्लोक १४, १५ मे प्रकाश डाला गया है। - ब्रह्मचारी प्रतिमाधारो श्रावक भो निर्जीव सवारीका उपयोग करते हए भी सजीव सवारीका त्याग करते है। वे घोडा बैलगाडी, तागा, मनुष्यो द्वारा खीचे जाने वाले रिक्शा का त्याग करते हैं क्योकि इनसे पशुओ और मनुष्योको कष्ट उठाना पडता है तब पालकीको कैसे साधुके लिए ग्राह्य माना जा सकता है, जो चार हाथ भूमि निरखकर पाव बढाते एवं ईर्या समिति पालते है ? पञ्चम प्रकाशमे इन्द्रिय-विजय पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। जनन-इन्द्रिय और रसना-इन्द्रिय ये दो इन्द्रियों हो मनुष्यको बलवान हैं। जननेन्द्रियपर विजय प्राप्तकर ब्रह्मचर्यको स्वीकार करने वाले महापुरुषोको रसना-इन्द्रियपर भी अकुश लगाना चाहिए, यह नितान्त आवश्यक है। षष्ठ प्रकाशमे षडावश्यकोका वर्णन है। इसमें एक जिन स्तुतिमे भगवान महाबोरकी स्तुतिमे नौ पद्य तथा चतुविशति स्तुतिके चौबीस पद्य बहुत सुन्दर रचे गये हैं। साधुओके साथ ही श्रावकोको प्रतिदिन पढने के लिए बहुत उपयोगी है। इसी प्रकार प्रतिक्रमण आवश्यकका वर्णन करते हुए प्रतिक्रमण पाठकी भो नवीन रचना २५ पद्योमे को है, जो बहुत उपयोगी है। ___ सप्तम प्रकाशमें पञ्चाचारका विशद वर्णन है। वोर्याचारका वर्णन करते हुए विविक्त शय्यासनमे अभावकाश, आतापन योग तथा वर्षा योग इन तीन तपस्याओंके स्वरूपका यथोचित निदर्शन किया गया है।
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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