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________________ १०० सम्यक्वारित्र-चिन्तामणिः मुख चन्द्रका सौन्दर्य नष्ट होकर कहीं विलीन हो जाता है। हाथीको मुंडके समान आभा वाली भुजाएँ सूखी मृणालके समान हो जाती हैं। मोतियोको जीतने वाले मुखके दात नष्ट होकर कहा चले जाते हैं ? जीवोंका जीवन शरद्के बादलोके समान भडगुर है । धन सम्पत्ति नश्वर है, सौन्दयं सम्पदा अस्थिर है । इस प्रकार हे आत्मन् । वस्तु स्वभावका विचारकर तं निरन्तर स्वस्थ रह अपना उपयोग अन्य पदार्थोंमे मत घमा। पर्यायाथिकन यकी अपेक्षा सब पदार्थ अनित्य हो हैं और द्रव्याथिक नयको अपेक्षा सब पदार्थ नित्य हो हैं ॥ २-११ ॥ आगे अशरण भावनाका चिन्तवन करते हैं कण्ठीरवसमाक्रान्तकुरङ्गस्येव कानने । यमाकान्तस्य जीवस्य नास्तीह शरणं क्वचित् ॥ १२ ॥ माता स्वसा पिता पुत्रो भ्राताम्रातृसुतोऽपि च । एते सर्वे मिलिस्वापि प्रायन्ते नंव मृत्युतः ।।१३।। दावानलेन संव्याप्ते गहने पावपस्थितः। दग्ध सवं विलोक्याप्य दग्धं स्वं मन्यते यथा ॥१४॥ तथंव निखिलं लोक मृत्युष्याघ्रमुखस्थितम् । दृष्ट्वापि हन्त मयोऽयं स्वं स्वस्थ मन्यते मुधा ॥ १५॥ निर्गते जीविते जीव गृहान् निःसारयन्ति हा। बान्धवा मित्रवर्गाश्च नयन्ते शवशायनम् ।। १६ ।। भस्मयन्ति मिलित्वा ते विलपन्ति स्वन्ति च। विपद्यमानान दृष्ट्वापि मृतः प्रत्येति न क्वचित् ।। १७॥ ससारस्य स्वभावोऽयमनादिनिधनो मतः। उत्पद्यन्ते म्रियन्ते च जीवा भवमरस्थले ॥१८॥ कोऽपि केनापि साधं नो याति प्रतियाति नो। एक एव सुहद् धर्मः साधं जीवेन गच्छति ॥ १९॥ शंले बने तडागे वा शैलस्य शिखरेष्वपि । धर्म एवं परो बन्धुस्तरणं भववारिधः॥२०॥ मात्मन्नशरण मत्वा धर्मस्य शरणं बज । धर्मावृते न कोऽप्यस्ति त्राता तब जगत्त्रये ॥२१॥ अर्थ-जिस प्रकार वनमे सिंहके द्वारा चपेटे हुए हरिणका कोई शरण-रक्षक नही है उसी प्रकार यमके द्वारा आक्रान्त जोवको कही कोई धारण नहीं है। माता. बहिन, पिता, पुत्र, भाई और भतीजा, ये सब
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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