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________________ सम्यक्चारित्र-चिन्तामणि. स्थायी स्नेह है उसे वात्सल्य अङ्ग जानना चाहिये। यह अङ्ग धर्ममें स्थिरता करने वाला है। लोकमे फैलते हुए धर्म विषयक बहुत भारी अज्ञानको दूरकर धर्मका प्रभाव स्थापित करना प्रभावना अङ्ग है। सम्यग्दृष्टि जीवोका सम्यग्दर्शन इन आठ अङ्गोसे हो पूर्ण होता है। हितकारो आचायोकी इन आठ अङगोमे जो प्रवृत्ति है, उसे दर्शनाचार जानना चाहिये। यह दर्शनाचार मुनिधर्मकी प्रभावना बढाने वाला है । अब आगे सम्यग्ज्ञानके कारणभूत ज्ञानाचारका कथन करते हैं।। १२-२२॥ सम्यक्त्वसहितं ज्ञानं सम्यग्ज्ञानं समुच्यते । सम्यमानेन जायन्ते जीवाः कर्मक्षयोग्रताः ॥ २३ ॥ स्वपरभेवविज्ञान मोक्षस्य मुख्यकारणम्।। सम्यग्ज्ञानेन तत्साध्यं तवज्यं साधुभिः सबा ॥ २४ ॥ अर्थ-सम्यग्दर्शन सहित जो ज्ञान होता है वह सम्यग्ज्ञान कहलाता है । सम्यग्ज्ञानसे जीव कर्मक्षय करनेमे उद्यत होते हैं । स्वपरभेद विज्ञान मोक्षका मुख्य कारण है, अतः साधुओको सम्यग्ज्ञानके द्वारा उसे अजित करना चाहिये ॥ २३-२४ ॥ आगे सम्यग्ज्ञानके आठ अङ्गो का वर्णन करते है कालाचाराविमेवेन जिनवाणीविशारदः। सम्यमानस्य सूक्तानि ह्यष्टाङ्गानि जिनागमे ॥ २५॥ कालशुधिविधातव्या स्वाध्यायाभिमुखेजने । पुरा स एव कालाख्य आचारः परिगीयते ॥ २६॥ पूर्वाह्न पराले च प्रदोषेऽपररात्रिके। एषु चतुर्ष कालेषु स्वाध्यायः प्रविधीयते ॥ २७ ॥ एषु यः सन्धिकालोऽस्ति स्वाध्यायस्तत्रवजितः। भूकम्प भूविवारे वा सूर्येन्दुपहणे तथा ॥२८॥ उल्कापाते प्रदोषे च दिग्वाहे देशविप्लवे। अन्यस्मिन् क्षोभकाले च प्रधानमरणे तथा ॥२१॥ स्वाध्यायो नंव कर्तव्यः परमागमसंहतेः। स्तोत्रादीनां सुपाठस्तु नो निषिता सुधीवरः ॥ ३०॥ सूत्रं गणधरौ प्रोक्तं भुतकेबलिभिस्तथा। प्रत्येकबुनिभिः प्रोक्तमभिन्नवरापूर्वकः ॥ ३१॥
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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