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________________ नहीं है कि वह अपने धर्म के मोटे मोटे शास्त्रो को पढ सके, माज का युग चाहता है छोटी छोटी पुस्तकें जो कि वह अवकाश के समय सुगमता से पहसक। मंडल ने अपनी कार्य पद्धति इसी ओर रखी। उसने समाज के प्रकाण्ड विद्वानरे से, जन ही नहीं किन्तु प्रजनो से भी जैनधर्म तथा इसके सिद्धान्तो पर छोटे छोटे ट्रैक्ट लिखवाए, जिनको हजारो की संख्या में प्रकाशित कर विना मूल्य देश-विदेशो तथा जैन व अजैन जनता मे वितरण किया । ससार का कोई भी देश ऐसा नहीं होगा जहाँ जैन मित्र मडल के ट्रैक्ट न पहुचे हो। इस प्रकार की १४२ पुस्तके मडल प्रकाशित कर चुका है । शायद कोई ही दूसरी ऐसी जैव सस्था होगी कि जो इतन'पुष्प' अबतक प्रकाशित कर सकी हो। ७ पिछले वर्ष साहित्य प्रचार में जैन मित्र मडल ने एक बहुत ही बडा कदम उठाया । ससार को चकित कर देने वाला राष्ट्रपति द्वारा कहा गया 'ससार का पाठवा पाश्चर्य' ७१८ भाषामयी ग्रन्थराज भूवलय' के प्रकाशन का कार्य इस सस्था ने उठाया । और गत वर्ष 'इसका मगल प्राभूत' 'इसके कतिपय सारगभित श्लोक' तथा इसमे अन्तर्गत 'भगवद्गीता' नाम की तीन पुस्तके प्रकाशित की जिनका उदघाटन काँग्रेस के मनोनीत अध्यक्ष श्री देवर भाई ने प्राचार्य श्री १०८ देशभूषण जी महाराज की उपस्थिति मे किया। ८. मण्डल के पास सदैव 'जनमा हत्य' के विषय मे परि प्रश्नात्मक पत्र प्राते रहते हैं और जैन धर्म जानने तथा जैन साहित्य के पढने के इच्छुक सदैव जैन साहित्य की मांग जैन मित्र मडल में करते रहते है । अब तक 'दिगम्बर जैन समाज' में इस प्रकार की कोई पुस्तक या सूची नहीं थी कि जिससे प्रकाशित जैन साहित्य का पता चल सकता हो । इसी कमा को दृष्टि में रखते हुए जैन समाज के मर्व अधिक 'मूक' तथा ठोम सेवक ला० पन्नालाल जी अग्रवाल देहली द्वारा सयोजित तथा प्रसिद्ध ऐतिहासिक लेखक डा० जो . प्रसाद जी लखन ऊ द्वारा सम्पादित 'प्रकाशित जन साहित्य की सन्न् १९४५ तक की यह सूची प्रकाशित करते हुए हमे वडार्ग हो रहा है। हम इन दोनो ही के बहुत कृतज्ञ हैं कि उन्होने इसमे अपना अमूल्य समय देकर यह पुस्तक
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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