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________________ विस्तृत प्रस्तावनामो मे, गत वर्षों मे प्रकाशित विभिन्न जैन अभिनन्दन ग्रन्यों मे, जैन हितैषी, जैन साहित्य सशोधक, जैन विद्या आदि भूत कालीन सामायिक पत्रो की फाइलो मे तथा जैन सिद्धान्त भास्कर, अनेकान्त, जैन सत्यप्रकाश, वीरवाणी आदि वर्तमान पत्र पत्रिकामो मे फुटकर लेखो के रूप मे जैन साहित्य और उसके इतिहास से सम्बन्धित विपुल सामग्री बिखरी पड़ी है। अग्रेजी प्रभृति विदेशी भापायो में जैन सम्बधी साहित्य के स्वरूप एव प्रगति का ज्ञान डा० ए० गिरनोट (Dr A. Guirnot) कृत 'जैना बिबलियोग्रेफिका,' रा० बाबू पारमदाम द्वारा सम्पादित 'जैन बिबलियोग्रेफी,' न० १ तया बाबू छोटेलाल जी कृत 'जैन बिबलियोग्रेफी' से हो सकता है। किन्तु इन पुस्तको मे सन् १९२५ के उपरान्त का विवरण नही है । जैन कथा साहित्य पर डा० जे० हर्टल का कार्य श्लाघनीय है । __ साहित्य के इतिहास और प्राचीन ग्रन्थो तथा अन्य प्रतियो के परिचय से जहों वर्तमान युग की बहुज्ञता बढती है तया विद्वानो एव अन्वेषको को अपने कार्य में भारी सहायता मिलती है वहाँ उनके कारण वर्तमान प्रकाशन प्रगति को भी भारो प्रोत्साहन मिलता है। साहित्यक क्षेत्र को समुन्नत एव प्रगतिशील बनाने के लिए युगानुसारी मौलिक ग्रन्य रचना और उनका प्रकाशन तो आवश्यक है ही, प्राचीन अप्रकाशित ग्रन्थ रत्नो के आवश्यक अनुवादादि सहित सुसम्पादित सस्करणो का प्रकाशन भी अतीव आवश्यक एव वाञ्छनीय है। जो साहित्य शताब्दियो और सहस्त्राब्दियो से कराल काल को चुनौती देता हुअा अपने लोक हितकारी अथवा लोकरजक रूप और स्थायी महत्त्व के कारण अक्ष ण्ण रहता चला आया है, अपनी इस अत्यन्त मूल्यवान बपौती का सरक्षण, प्रचार, प्रसार एव सदुपयोग करना वर्तमान सन्तति का प्रधान कर्तव्य है। इस प्रकार न केवल तनद सस्कृति की धारा अनवरोध रूप से प्रवाहित होती चली जायगी वरन उसके पुनीत जल मे निमज्जन करते रहने से मानव समाज सदैव अपना कल्याण करता रहेगा, उसे नव स्फूति प्राप्त होती रहेगी और उसे अपना जीवन पथ-प्रशस्त रखने में सहायता मिलेगी।
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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