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________________ १३८ शोभामय सुन्दर शैली से, हम शयनागार सजा सकतीं । नित नूतन बन्दनवार बना, हम हर गृह द्वार सजा सकतीं || अनुरूप सजावट कर सकतीं, पर्वों के विविध प्रसंगों पर । अति मुग्ध आप हो जायेंगी, सज्जा करने के ढंगों पर || प्रिय लगें आपको जैसे भी, सकती हम वैसे हार बना । भूषण भी प्रकार बना || सुमनों के सुन्दर सकती है विविध परम ज्योति महावीर कह सकर्ती मन बहलाने को, प्रति दिवस नवीन पहेली भी । दासी भी बन कर रह सकतीं, रह सकतीं बनी सहेली भी ॥ इसके अतिरिक्त हमें स्वामिनि ! हे ज्ञात पाक विज्ञान सभी । सकतीं, हम छप्पन भोग बना मिष्टान्न सभी पक्वान सभी ।।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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