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________________ १३६ कल से श्रष्टाहिक मह पूजन, इस वर्ष विशेष मनाना है । श्री सिद्धचक्र का पूजन हर जिन मन्दिर में करवाना है | अतएव यहाँ से जा कर तुम विश्राम अभी सामोद करो । या अपना मन बहलाने को, सखियों से मनोविनोद करो || यो विशद विवेचन मधु स्वर मेंकर पूर्ण मौन नरराज हुये । सुन जिसे ध्यान से महित्री के हर ङ्ग प्रफुल्लित आज हुये ।। परम ज्योति महावीर वक्तव्य पूर्ण कर जैसे ही. 'सिद्धार्थ' -- विचार - प्रवाह रुका । 'त्रिशला' का मस्तक भी उनके, पद पंकज पर सोत्साह मुका || सविनय प्रणाम कर प्रियतम को, वे उठीं और सोल्लास चलीं । उस राज सभा से बाहर था, वे सखियों सँग रनिवास चलीं ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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