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________________ तीसरा सर्ग रजनी का अन्तिम प्रहर लगा, रजनीकान्त हुये । निष्प्रभ से तारापति की यह दशा निरख, तारागण भी प्रति क्लान्त हुये ॥ तम बढ़ा और प्रत्येक वस्तु, हो गयी पूर्णतः काली थी । या सृष्टि किसी रँगरेजिन ने काले रंग में रंग डाली थी ॥ पर । लगता था, सूख रहीं श्यामल-साड़ी नदियों के कुलों सो रही भ्रमरियों की सेना, जगती भर के सब फूलों पर ॥ महित्रों की परिषद बैठी हो सारे औौ' तारकोल हो कोई सम्पूर्ण निकेतों ही जैसे खेतों में । नभ को मसिभाजन समझ किसी ने काली स्याही घोली हो । ली पहिन दशों दिग्वधुनों ने काली मखमल की चोली हो ॥ पोत गया, # || १०१
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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