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________________ परम ज्योति महावीर जम्बूस्वामी - राजगृही के श्र ेष्ठि कुमार, राजा श्रेणिक के समय में श्री सुधर्माचार्य के शिष्य हो मुनि हुये । तप कर अन्तिम केवली हो मोक्ष पधारे, यह प्रसिद्ध है । इनका मोक्ष स्थान मथुरा चौरासी है । ६४० केवली - अरहन्त भगवान १३ व १४वें गुण स्थानवर्ती, छः मासाठ समय में संयोग केवली कुल ८ लाख ६८ हजार ५ सौ २ (८६८५०२ ) एकत्र हो सकते हैं । केवली - द्वादशांग जिन वाणी के पूर्ण ज्ञाता,. श्रुत भरत में इस पंचम काल में श्री जम्बू स्वामी के मोक्ष जाने पर १०० वर्ष में पाँच श्रुत केवली हुये। विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु | चन्द्रगुप्त -- मौर्य वंश का प्रथम सम्राट् जो सिकन्दर का समकालिक था । अनेकान्त--अनेक अन्त या धर्म या स्वभाव जिसमें पाये जायें ऐसे पदार्थ । अनेक धर्मों वाले पदार्थों को कहने वाली व भिन्न अपेक्षा से बताने वाली स्याद्वाद रूप जिनवाणी । यही परमागम का बीज है अर्थात् इसके समझने से परस्पर विरोध का अवकाश नहीं रहता है । एकादश अंग -- जिन वाणी के १२ अंगों में पहिले ११ अंग श्राचाराङ्ग, सूत्र कृताङ्ग, स्थानाङ्ग, समवायान, व्याख्या प्रशति अङ्ग, शातृधर्म कथा श्रङ्ग, उपासकाध्ययनाङ्ग, श्रन्तकृद्दशांग, अनुत्तरोपादिक दशाङ्ग, प्रश्न व्याकरण विपाक सूत्र । पूर्व -- द्वादशांग वाणी में दृष्टिवाद बारहवें अंग का एक भाग 4 इसके १४ भेद हैं ।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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