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________________ पारिभाषिक शब्द कोष ६३६ श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदन्त, दान्त और यति । काल लब्धि-किसी कार्य के होने के समय की प्राप्ति । सम्यग्दर्शन के लिये अर्ध पुद्गल परिवर्तन काल मोक्ष जाने में शेष रहना काल लन्धि है। इससे अधिक काल जिसके लिये संसार होगा उसे सम्यक्तव न होगा। महावती–महाव्रतों को पालने वाले साधु, २८ मूलगुणधारी । तेईसवा सर्ग रक्षा बन्धन–सलूनो या सलोनो नाम का त्योहार, जो श्रावणी पूर्णिमा को होता है, (इस अवसर पर बहिनें अपने भाइयों को और पुरोहित अपने यजमानों की कलाई में कपास या रेशम का अभिमन्त्रित रक्षा सूत्र बाँधते हैं)। स्वाति-२७ नक्षत्रों में से १५वाँ जो शुभ माना गया है । कविसमय के अनुसार चातक इसमें ही होने वाली वर्षा का जल पीता है और वही जल सीप के सम्पुट में पहुँच कर मोती और बाँस में वंशलोचन बनता है। अनन्त चतुष्टय-अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्त वीर्य ये चार मुख्य गुण केवली अरहन्त परमात्मा के प्रगट होते हैं। वायु कुमार-भवनवासी देवों का दसवाँ भेद, इनके इन्द्र वे लम्ब व प्रभञ्जन हैं। इनके ६६ लाख भवन है, हर एक में अकृत्रिमजिन मन्दिर है । उत्कृष्ट प्रायु १॥ पल्य जघन्य १०००० वर्ष है। इनके मुकुटों में घोड़े का श्राकार है।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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