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________________ ५६२ परम ज्योति महावीर इन्द्रों ने इसमें ही अन्तिमप्रभु का अन्तिम संस्कार किया । प्रभु के वियोग में भी नियोग, सम्पूर्ण समस्त प्रकार किया ।। यो अन्त्य क्रिया के करने में, बीता वह प्रातःकाल अहो । फिर गाते र दिवस भर सब, प्रभुवर-गुण की जयमाल अहो ।। क्रमशः मध्याह व्यतीत हुवा, अति मन्द दिनेश प्रकाश हुवा । सन्ध्या श्रायी औ' तिमिर जालसे व्याप्त अखिल आकाश हुवा ।। तम के काजल से लिप्त हुये, प्रत्येक दिशा के कोने थे । प्राकृतिक दृश्य तिमिराञ्चल में, अब लगे तिरोहित होने थे। श्री 'परमज्योति' थे नहीं अतः यह तिमिर विशेष अखरता था। उन वीतराग के देह, त्यागका सवको क्लेश अखरता था ।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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