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________________ बाईसवा सर्ग सविनय प्रदक्षिणा तोन तुरतंदे सूचित हर्ष विशेष किया । फिर हस्त जोड़ कर प्रकट स्वयं', ही श्राने का उद्देश्य किया ॥ सुन उनका संशय दूर किया, प्रभु ने अत्यन्त सरलता से । 'स्कन्दक' हो गये प्रभावित अब, उनको इस ज्ञान प्रबलता से । अतएव 'वीर' के कथित मार्गमें ही दिखलायी सार दिया । तत्काल त्याग उपकरण सभी, यह श्रमण धर्म स्वीकार किया । श्री 'वीर' गये 'भावस्ती' फिर बनता पायी सोत्साह यहाँ । कुछ समय बहाया शान्ति सहित धर्मामृत-सरित-प्रवाह यहाँ ।। 'भावस्ती' से चलकर 'विदेह'को वे आध्यात्मिक सन्त गये। पथ में उन पर भदान कईमन दिखलाते अंत्यन्त गये ।।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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