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________________ ५२८ परम ज्योति महावीर अतएव नित्यता पर इनकी, सन्देह रहित विश्वास करो । स्याद्वाद-दृष्टि से तत्व-रूपके चिन्तन का अभ्यास करो। पर्याय अवश्य बदलती है, होती है प्राप्त नवीन यहाँ । एवं विनष्ट हो जाती है, पर्याय मात्र प्राचीन यहाँ ।। ज्यों एक वसन तज अन्य पहिन, नर बदला करता वेष स्वयं । स्यों जीव एक तन त्याग अन्यमें करता किया प्रवेश स्वयौं । अतएव मरण से होता है, केवल तन का अवसान सदा । पर आत्मा नष्ट न होती है, तुम करो यही श्रद्धान सदा ।। हैं द्रवएँ नित्य अनादि सभी, इससे अनादि संसार सभी । कोई न किया करता इसका, नव सजन और संहार कभी ।।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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