SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परम ज्योति महावीर षट मास अभी तक सँग रह कर, उपसर्ग आप पर घोर किया । पर सदा आपकी दृढ़ता ने, है मुझको हर्ष विभोर किया ।। था देवराज ने ठीक कहा, हो गया मुझे अब निश्चय यह । तप से च्युत करने आया था,, अब जाता हूँ मैं जय जय कह ।। यों की सराहना मुक्त कण्ठसे उनकी शान्ति अटलता की। श्री' बारम्बार प्रशंसा की, उनके तप की निर्मलता की । पश्चात् भक्ति से उनके पद-- पर अपना मस्तक टेक दिया । औ' कहा-"प्रभो ! वह क्षमा करें अब तक जो कुछ अविवेक किया ||" यह कह कर उसने प्रभुवर केचरणों से भाल उठाया फिर । औ' होकर अन्तर्धान शीघ, वह स्वर्ग लोक में पाया फिर ।।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy