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________________ कृति की कथा माध्यमिक शाला में अध्ययन करते समय ही काव्यानुरक्ति की बेलि मेरे हृदय में अंकुरित हो उठी थी, फलतः सरस काव्यों का रसास्वादन एवं उनके गुण दोषों का विवेचन मेरा दैनिक व्यसन सा बन चला। यह व्यसन केवल यहीं तक सीमित नहीं रहा, अपितु काव्य रचना का रोग भी वाल्यावस्था से ही लग गया। हिन्दी साहित्य के पाठ्य अन्यों के रूप में जय श्री राष्ट्र कवि मैथिली शरण जी गुप्त का 'साकेत' तथा महा कवि श्री जयशंकर प्रसाद जी की 'कामायनी' आदि हिन्दी के ख्याति प्राप्त महाकाव्य पढ़ने को मिले, तब उनको महत्ता से प्रभावित मेरे हृदय में यह मावना जागृत हुई कि जैन धर्म के चरम तीर्थ कर परम ज्योति महावीर के सम्बन्ध में भी एक ऐसा महाकाव्य अविलम्ब रचा जाना चाहिये, जिसमें उनके जीवन से सम्बन्धित समस्त घटनाओं के साथ तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का भी यथा स्थान चित्रण हो, जिसको पढ़कर पाठक का हृदय करुण, धर्मवीर एवं शान्त रस की त्रिबेणी में अवगाहन कर पावन हो उठे । जिसमें केवल कवित्व का प्रदर्शन, प्रतिभा का चमत्कार एवं बुद्धि का व्यायाम ही न हो, अपितु चरित्र नायक द्वारा प्रतिपादित तत्वों एवं दर्शन का भी यथा स्थान विवेचन हो । इसके साथ ही सर्वत्र जैन धर्म की मौलिक मान्यताओं की सुरक्षा का भी पूर्ण ध्यान रखा जाये। उक्त विशेषताओं से युक्त महाकाव्य की आवश्यकता केवल मैने ही अनुभव की हो, ऐसी बात नहीं । मुझ जैसे अनेक परम ज्योति
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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