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________________ २३४ परम ज्योति महावी शुभ नियत समय पर जात कर्मसम्पन्न सविधि सोल्लास हुवा । फिर चन्द्र, सूर्य के दर्शन का, भी शुभ उत्सव सविलास हुवा ।। दस दिन तक यों ही महोत्सवोंके ये अभिराम प्रवाह चले। अवलोक जिन्हें आबाल-वृद्ध, अपना सौभाग्य सराह चले । वह 'कुण्ड ग्राम' ही नहीं, अपितुथी सजी पुरी 'वैशाली' भी । वह थी निसर्ग से सजी किन्तु, अब हुई विशेष निराली ही ।। बारहवें दिन 'सिद्धार्थ' नृपतिने मबका किया निमन्त्रण था । प्रिय सुहृद्-स्वजन-सामन्तों से, भर गया सकल राजाङ्गण था ।। नृप ने भोजन ताम्बूल वसनसे सबका अति सत्कार किया । तदनन्तर सबके सम्मुख यों, घोषित निज उद्गार किया ।।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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