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________________ २२६ पर सुरपुर से भी तो 'नगोद' में ले इनका दुर्भाग्य गया । एकेन्द्रिय काय ले या फिर वनस्पति में, सौभाग्य नया ॥ पश्चात् 'राजगिरि' नगरी में, 'शाण्डलि' के विप्रकुमार हुये ! 'माहेन्द्र' नाम के सुरपुर में, जाकर फिर देवकुमार हुये ॥ कर आयु पूर्ण फिर 'विश्वभूति' राजा के राजकुमार हुये । तप के प्रभाव से फिर दसवें - सुरपुर के ये श्रृङ्गार हुये || परम ज्योति महावीर जनमे 'पोदनपुर' - राजा के, नारायण पद अभिराम मिला । पर विषयलीनता से फिर से, सातवें नरक का धाम मिला || गङ्गा तट के 'वनि सिंह' अचलमें इनको सिंह- शरीर मिला । हिंसा फल से फिर प्रथम नरक की बैतरिणी का नीर मिला || -
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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