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________________ rai सर्ग श्र पुनः वहाँ से 'कपिल' नामके ब्राह्मण को सन्तान हुये । वय पाने पर परिवाजक हो, सुरपुर में देव महान हुये || तदनन्तर में पुत्र रूप में हो सांख्य यती वे 'सौधर्म' स्वर्ग में पश्चात् यहाँ श्रा पुत्र रूपमें 'अग्निभूति' के गृह जनमें । हो साधु पुनः उत्पन्न हुये, वे स्वर्गलोक के आँगन में ॥ 'भारद्वाज' भवन ले जन्म 'साङ्कलायन' के गृह अति पावन उसका धाम किया । कर ग्रहण त्रिदण्डी दीक्षा फिर ब्रह्माख्य स्वर्ग श्रभिराम किया || आये थे । जन्म पुनः पाये थे ॥ - फिर इनने 'गौतम' ब्राह्मण के -- गृह में आकर अतवार लिया । कर सांख्य प्रचार यहाँ भी तो, फिर सुरपुर का शृङ्गार किया || २२५
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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