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________________ araat सर्म अभिषेक आपका कर जल से चाह रही । हो गयी पूर्ण, जो शृंगार श्रापके तन का कर, इन्द्राणी भाग्य सराह रही 11 हे विभो ! हमारी गिरा सफल, हो गयी आपकी 'जय' 'जय' कह | हो गया आपके श्रागम से, पावन 'सुमेरु' गिरि निश्चय यह ॥ चुका, इसी -- पर्याप्त समय हो क्षण 'कुण्ड ग्राम' को जाना है । तर यहाँ अब और अधिक, दो क्षण भी नहीं लगाना है |" यह कह 'ऐरावत' पर उनने, प्रभु को बैठा प्रस्थान किया । अविराम पहुँच कर 'कुण्ड ग्राम', राजाङ्गण शोभावान किया || रानी की, सौंप दिया । द्रुत इन्द्राणी ने निद्रा हर बालक औ कहा - " न व्यापे पुत्र - विरह, इससे मैंने यह छद्म किया || ૪ ૨૦
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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