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________________ व्यामोह विहीनता- आप में एक विशिष्ट गुण का प्राधान्य पाया जाता है। जब आप तर्कसंगत, विद्वतापूर्ण विशेष कोई भी कार्य करते तो उसका श्रेय अन्य किसी व्यक्ति विशेष को इंगित कर देते तथा स्वयं प्रतिष्ठा के निर्लोभी बने रहते । कार्य का सम्पादन स्वयं करते और उसकी प्रतिष्ठा, इज्जत के अधिकारी अन्य व्यक्ति होते । यह आपकी व्यामोह विहीनता, महानता, प्रबल सांसारिक वैराग्य और क्षणभंगुर शरीर के प्रति निर्ममत्व के साथ ही मानव समाज के कल्याण की उत्कृष्ट भावना का प्रतीक था। परम दिगम्बर जैनेश्वरी दीक्षा- इस प्रकार ज्ञान और चारित्र में श्रेष्ठता पा जाने पर आपके अन्तर में वैराग्य की प्रबल ज्योति का उदय हुआ तथा सीकर (राज.) में आकर जनसमूह के सामने परम पूज्य दिगम्बर जैनाचार्य श्री शिवसागर जी महाराज से समस्त अंतरंग और बहिरंग परिग्रह का त्याग करके कार्तिक सुदी 4 संवत् 2018 की शुभ तिथि व शुभ नक्षत्र में आपने दिगम्बर मुनिदीक्षा धारण कर ली। आचार्यश्री ने आपका नाम संस्कार श्री अजितसागर नाम से किया । आपका संस्कृत ज्ञान परिपक्व एवं अनुपम है । आपने निरन्तर कठोर अध्ययन एवं मनन से ज्ञान का भंडार अपनी आत्मा में समाहत किया। उससे अच्छे-अच्छे विद्वान दांतों तले उंगली दबाकर नत हो जाते हैं 1 मुनिश्री सुहागसागरजी आपका जन्म ग्राम रीवां, जिला मैनपुरी उ.प्र. में हुआ। पिता का नाम श्री लाहौरी लाल व माता का नाम रतन बाई था। मुनिश्री का गृहस्थावस्था का नाम चन्द्रकान्त था । बाल्यावस्था गांव में ही गुजरी। युवावस्था प्राप्त होते ही इन्दौर जाकर स्वतन्त्र व्यवसाय किया । इदौर पंचकल्याणक में आचार्य श्री विमलसागर जी से सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किए। संघ के पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 64
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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