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________________ ओर से घोषणा हुई- आचार्यश्री के स्मृति दिवस पर प्रतिवर्ष रथोत्सव होगा।' मुनिसंघ ने स्वेच्छा से सुधर्मसागर संघ की स्थापना करने का भाव प्रगट किया। श्री दिगम्बर जैन नवयुवक मंडल, कलकत्ता ने उनको सार्वजनिक रूप से अभिनन्दन करने के लिए एक विशालकाय अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन कराया था। आचार्यश्री महावीरकीर्तिजी महाराज इस भारत वसुन्धरा में समय-समय पर जिन महापुरुषों ने जन्म लेकर स्व-पर उपकार द्वारा जीवन को अलंकृत कर धर्मप्राण देश को पावन किया है, उन्हीं महापुरुषों में से एक चरित्र नायक आचार्यश्री महावीरकीर्ति जी भी हैं। भगवान महावीर की आदर्श दिगम्बर साधु परम्परा में इस बीसवीं सदी में जो तपस्वी सन्त हुए उनमे आचार्य महावीर कीर्ति जी महाराज भी ऐसे प्रमुख श्रेष्ठ तपस्वी रत्न थे जिनकी अगाध विद्वता, कठोर तपस्विता, प्रगाढ़ धर्मश्रद्धा, आदर्श चरित्र और अनुपम त्याग ने विश्व में वास्तविक धर्म की ज्योति प्रज्ज्वलित की। वंश परिचय-आगरा जिले में किसी समय चन्द्रवाड़ जिसे चन्द्रवार भी कहते हैं। बहुत बड़ा नगर था। विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी में चौहान वंशी राजाओं का राज्य रहा है। वर्तमान मे वह एक उजड़ी हुई छोटी बस्ती है। उन राजाओं के समय में अनेक राज्य श्रेष्ठी, प्रधानमंत्री, कोषाध्यक्ष आदि उच्च राजकीय पदों पर आसीन रहे हैं। प्रसंगवश एक ऐतिहासिक घटना का उल्लेख करना उचित होगा। एक बार इस नगर पर यवनों का आक्रमण हुआ। तब नगर के निवासी अपने घरबार छोड़कर भाग गये। जैन समाज के धार्मिक व्यक्तियों को भी नगर छोड़कर भाग जाने को बाध्य होना पड़ा। उस समय एक जिन मंदिर पद्यावतीपुस्वाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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