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________________ विकसित होती गई। अपनी कला व विनम्रता से वे जनता में प्रसिद्ध एवं सम्मान के पात्र हो गये। राज्य मंत्री ने छलकर इन्हें जोगी का स्वांग रचने के लिए राजा से कहलाया। इनके घर में सुन्दर गुणवती सुशील विवाहित पत्नी थी । भरा-पूरा परिवार था । परन्तु साधु वेष धारण करने पर वह नकली रूप असली में परिवर्तित हो गया। हृदय में वैराग्य उत्पन्न होने पर दिगम्बर मुनि का वेष धारण कर सदा के लिए साधु बन गये। सभी माया मोह छोड़कर विरक्त जैन मुनि हो गये। त्रेपन क्रिया, कृपण जगावन चरित्र, समोशरण, जलगालन विधि, मथुराबाद पच्चीसी, विवेक चौपाई, नित्यनियम पूजा के अनूठे छन्द, हिन्दी अष्टक आदि छन्दों में सभी काव्य ग्रन्थ हैं। सूर, तुलसी, मीरा, बनारसीदास जैन, जैन कवि भगवतीदास जी, अध्यात्म विद्या के पंडित भी इनके समकालीन कवि थे। श्री बनारसीदास जी जैन आगरावासी थे। फिरोजाबाद भी पधारे थे। श्री पी. डी. जैन इण्टर कालिज फिरोजाबाद में श्री बनारसीदास की स्मृति में एक चबूतरा व श्री ब्रह्मगुलाल की पादुका बनाकर सुन्दर छत्री बनी हुई है। सन् 1951-52 के करीब श्री पी. डी. जैन इण्टर कालिज फिरोजाबाद में एक इमली के पेड़ के आंधी में गिर जाने से भूगर्भ से इनके चरण प्राप्त हुए थे। ऊपर प्राचीन लेख उत्कीर्ण है। यह चरण जैन नशियां जी में विराजमान हैं। इन्होंने ब्रजभाषा में सात काव्य ग्रन्थों का सृजन किया है। इनकी गद्य-पद्य की लिखी पुस्तकें, कवि की वास्तविक जन्म तिथि, सही निवास स्थान एवं इनके साहित्यिक कार्यकलापों का अनुसंधान होने की आवश्यकता है । श्री ब्रह्मगुलाल जी बहुत दिनों तक ग्राम जारखी (आगरा) जो कि टापा के पास ही है, अपने मित्र मथुरामल के यहां रहे और उनके कहने पर ही जारखी में ही कई ग्रन्थों की रचना की थी । जारखी के दोनों जैन मंदिरों पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 38
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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