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________________ रही है। भगवान पार्श्वनाथ भी उरग वंश में उत्पन्न हुए थे जो नागवंशी की ही एक शाखा रही। पार्श्वप्रभु का प्रभाव नागवंशी राजाओं पर रहा। उनका विहार भी यहां कई बार हुआ और नागेन्द्र धरणेन्द्र और उनकी इन्द्राणी पद्यावती ने पार्श्व प्रभु की उपसर्ग के समय सहायता की। अतएव नाम साम्य, ग्राम नाम साम्य और श्रद्धा साम्य के कारण भी श्रद्धा का भाव होने से पद्मावती देवी की मान्यता रही है। पद्मावती नगरी की अनेकता-यों तो अजमेर के निकट पुष्कर सरोवर के पास भी एक पद्मावती नगर था। मथुरा के निकट भी इस नाम के नगर का उल्लेख ग्रन्थों में है। - निशदिन श्रीजिन मोहि अधार ॥टेक॥ जिनके चरन-कमल के सेवत, संकट कटत अपार ॥निशदिन.॥ जिनके बचन सुरारस-गर्भित, मेटत कुमति विकार ॥निशदिन.॥ भव आताप बुझावतको है, महामेघ जलधार निशदिन.॥ जिनको भगति सहित नित सुरपत, पूजत अष्ट प्रकार निशदिन.॥ जिनको विरद नेदविद वरनत, दारुण दुख-हरतार ॥निशदिन.॥ भविक वृन्द की विथा, अपनी ओर निहार निशदिन.॥ -वृंदावन पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 24
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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