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________________ प्रभाव से तीर्थंकर के शरीर पर पुष्प बनकर गिरते थे। जब घातक शस्त्र भी निष्फल हुए, तब सम्बर ने माया से अप्सराओं का समूह उत्पन्न किया। कोई गीत द्वारा रस संचार करने लगी, कोई नृत्य द्वारा वातावरण में मादकता उत्पन्न करने लगी । अन्य अप्सरायें नाना प्रकार के हाव-भाव और चेष्टायें करने लगीं । किन्तु आत्मध्यानी वीतराग पार्श्व जिनेन्द्र अन्तर्विहार में मग्न थे, उन्हें बाह्य का पता ही न था । किन्तु देव भी हार मानने वाला नहीं था । उसके भयानक रौद्रमुखी हिंसक, पशुओं द्वारा उपसर्ग किया, कभी भयंकर भूत-प्रेतों की सेना द्वारा उत्पात किया, कभी उसने उपल वर्षा की। उसने पार्श्वनाथ पर अचिन्त्य, अकल्प्य, उपद्रव किये, सारी शक्ति लगा दी उन्हें पीड़ा देकर ध्यान से विचलित करने की किन्तु वह धीर-वीर महायोगी अविचल रहा । वह तो बाह्य से एकदम निर्लिप्त, शरीर से निर्मोह होकर आत्मरस में विहार कर रहा था । इस प्रकार उस सावरदेव ने सात दिन तक पार्श्वनाथ के ऊपर घोर उपसर्ग किये। यहां तक कि उसने छोटे-मोटे पर्वत तक लाकर उनके समीप गिराये । अवधि ज्ञान से यह उपसर्ग जानकर नागेन्द्र धरणेन्द्र अपनी इन्द्राणी के साथ वहां आया। वह फण रूपी मण्डप से सुशोभित था । धरणेन्द्र ने भगवान को चारों ओर से घेर कर अपने फणों के ऊपर उठा लिया । पद्मावती देवी भगवान के ऊपर वज्रमान छत्र तानकर खड़ी हो गई । यहां पाठकों का ध्यान इस बात की ओर आकर्षित करना आवश्यक समझते हैं कि जब भगवान पार्श्वनाथ पर धरण ( धरणेन्द्र) नामक नाग ने अपने विशाल फणमण्डल को उन पर तान कर उनकी रक्षा की। उसमें पद्मावती का नाम नहीं है। आचार्य समन्तभद्र ने अपने वृहत्सवयम्भू स्तोत्र में भगवान पार्श्वनाथ के स्तवन में इस घटना का चित्रण करते हुए लिखा है पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 22
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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