SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परन्तु खेद है कि आज यह नगरी वहां अपने रूप में नहीं है । किन्तु ग्वालियर राज्य में उसके स्थान पर 'पवाया' नामक छोटा-सा गांव बसा हुआ है। अब यह मध्यप्रदेश प्रान्त के ग्वालियर जिले का एक गांव है | देहली से बम्बई जाने वाली सैन्ट्रल रेलवे लाइन पर डबरा नामक स्टेशन से कुछ दूर पर स्थित है। ग्वालियर से 63 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है । तो यह है पद्मावती नगरी का इतिहास । यह पद्मावती नगरी ही पद्मावतीपुरवाल जाति के निकास का स्थान है । इस दृष्टि से वर्तमान 'पवाया ग्राम' पद्मावतीपुरवालों के लिए विशेष महत्व की वस्तु हैं भले ही आज वहां पर पद्मावतीपुरवालों का निवास न हो किन्तु उसके आस-पास आज भी पद्मावतीपुरवालों का निवास पाया जाता है। ग्वालियर में ही वर्तमान में 30 घर इस समाज के निवास करते हैं । पद्मावतीपुरवाल समाज - त्रिभुज की दूसरी रेखा है पद्मावतीपुरवाल समाज । अतः साहित्य एवं विद्वानों की राय में पद्मावतीपुरवाल 1. श्री महेन्द्र कुमार जैन बी. ए. आगरा ने सुनहरीलाल अभिनन्दन ग्रन्थ में लिखा है कि पद्मावतीपुरवाल जाति विश्व में अपनी कुछ विशेषताओं को समेटे हुए है। कहा जाता है कि यह वर्तमान की चौरासी जातियों में सम्मिलित नहीं है। पद्मावतीपुरवाल जाति एक स्वतंत्र जाति प्रतीत होती है । यहां पर हम थोड़ा स्पष्टीकरण करना चाहेंगे। प्रथम तो स्वतंत्र जाति से क्या तात्पर्य है स्पष्ट नहीं है क्योंकि प्रत्येक जाति का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है। दूसरे 84 जातियों की संख्या वर्तमान में लगभग 237 है । क्योंकि प्रत्येक प्रान्त की अलग अलग 84 जातियों की सूची है। उनमें कुछ नामों की ही समानता है। जहां तक 84 जातियों की सूची में पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 18
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy