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________________ नाग राजाओं के सिक्के भी मालवा में कई जगह मिले हैं।" नागवंश का अंत ईसा की चौथी शताब्दी के लगभग मध्य में हुआ। जबकि इनका राज्य गुप्त साम्राज्य में मिला लिया गया। पद्मावती का उल्लेख वाण के 'हर्षचरित' में है । सुविख्यात नाटककार भवभूति के 'मालती माधव' में भी इसका विस्तृत उल्लेख है। जिसमें नगर की भौगोलिक स्थिति का बड़ा विशद वर्णन किया गया है। यहां एक विश्वविद्यालय भी था जहां विदर्भ और सुदूरवर्ती प्रान्तों के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे । ग्यारहवीं शताब्दी में रचित 'सरस्वती कंठाभरण' में भी पद्मावती का वर्णन है। पौराणिक काल में पद्मावती नाम का एक जनपद था, जिसका प्रधान केन्द्र 'पद्मनगर' था । मध्यकाल में यह 40 कि.मी. पश्चिम की ओर स्थित नरवर के शासक विभिन्न राजपूत तथा मुसलमान राजाओं के अधिकार में रही। सन् 1506 में सिकन्दर लोदी ने नरवर पर फतह हासिल की और उसने पवाया को जिले का मुख्यालय बनाया। कहा जाता है कि सफदर खां ने, जो कदाचित पहला प्रशासक था, परमारों द्वारा बनवाये किले में सुधार किया और उसका नाम अस्कन्दराबाद रखा जैसा कि फारसी के अभिलेख में उल्लेख है। मुगल सम्राट जहांगीर ने इसे ओरछा के वीरसिंहदेव को उसकी स्वामिभक्ति के एवज में दिया। बुन्देला सरदार ने शिव का दुमंजिला मंदिर बनवाया । पुराने स्थल पर सन् 1925, 1934, 1940 और 1941 में चार बार उत्खनन कार्य किये गये। खुदाई में ईस्वी सन् की पहली शताब्दी से लेकर आठवीं शताब्दी तक की अनेक पुरातत्व सामग्री मिली है। इनमें से मणिभद्र यक्ष की पूर्ण मानवाकार मूर्ति जिस पर लगभग ईस्वी सन् की पहली शताब्दी के ब्राह्मी लेख उत्कीर्ण है । खण्डहरों से उपलब्ध अनेक सिक्कों को एकत्र करके ग्वालियर के संग्रहालय में सुरक्षित रख दिया गया है। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 17
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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