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________________ योगदान दिया है। . . .... .. 1958 में दिल्ली आने से लेकर अब तक इन्होंने हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य, धर्म-प्रचार-प्रसार, गुरु-भक्ति तथा मानव-कल्याण के अनेक कार्यों के माध्यम से सामाजिक नव जागरण के नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। जुलाई 1997 में हृदय-रोग से पीड़ित होने और फरवरी 1998 में बाई पास कराने के बाद भी उनकी सक्रियता वर्तमान में भी लगभग वैसी ही है। पद्मावती पुरवाल जाति के इस बहुआयामी व्यक्तित्व से इस प्रदेश का जनमानस बड़ा प्रभावित है, इसमें कोई सन्देह नहीं। । स्वतन्त्रता प्राप्ति आन्दोलन एवं समाज-सेवा के क्षेत्र में स्वनामधन्य श्री पन्नालाल जी 'सरल' (नारखी) श्री केशवदेव दी (कायथा), श्री बाबू नेमिचन्द जी गुप्ता (बेरनी) समाजसेवियों एवं स्वतन्त्रता सेनानियों की भी एक लम्बी सूची है। उन सभी का समग्र परिचय दे पाना यहां संभव नहीं है। अतः यहां उनकी सूची मात्र प्रस्तुत की जा रही है, जो निम्न प्रकार है__ “जातिभूषण' उपाधिधारी मुंशी हरदेव प्रसाद जी जमींदार (बेरनी), पाण्डेय कंचन लाल जी (टूंडला), मुनि ब्रह्मगुलाल जी के वंशज पाण्डेय उग्रसेन जैन शास्त्री टूंडला तथा उनके भाई पाण्डेय रूपचंदजी , पाण्डेय शिवलाल जी, पाण्डेय सुखानन्द लाल जी, श्री रामस्वरूप जी (1904-1062 ई.) (इन्दौर), श्री कान्ति स्वरूप जी (सन् 1916 इन्दौर) श्री हकीम प्रेमचंद जी (फिरोजाबाद), श्री श्री श्योप्रसाद जी रईस टूंडला, (जो आचार्य शान्तिसागर जी महाराज के टूंडला-चातुर्मास के संवाहक भी रहे), श्री राजकुमार जी फिरोजाबाद (सन् 1910), सुप्रसिद्ध नगरसेठ श्री गुलजारी लाल जी रईस (अवागढ़) (सन् 1847), श्री मुंशीलाल जी कोटकी (सन् 381 पावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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