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________________ एक विशेष तथ्य यह है कि षट्खण्डागम साहित्य के प्रकाशन के समय जब 'संजद' शब्द के विरोध या समर्थन की समस्या उठ खड़ी हुई, तब दिग्गजों द्वारा आयोजित शास्त्रार्थ में उनकी भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण रही। उस समय धवल ग्रन्य को ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण किया जा रहा था। संजद् शब्द-प्रयोग से जैन समाज के अनिष्ट की आशंका से उन्होंने उसका विरोध किया और इनके अथक प्रयत्नों से उस शब्द को निकाल दिया गया। शास्त्री जी की निम्न रचनाएं प्रसिद्ध हैं1. मकरध्वज-पराजय (मौलिक) 2. हरिवंशपुराण (अनु.), 3. तत्त्वार्थराजवार्तिक (सम्पादन), 4. विदेह-क्षेत्र-विंशति-तीर्थंकर-पूजा (संस्कृत) एवं, 5. चौबीसी भगवान् स्तुति (संस्कृत के विविध गेय छन्दों में) (अनुपलब्ध) श्री सुरेन्द्रनाथ श्रीपाल बहुभाषाविद् श्री सुरेन्द्रनाथ 'श्रीपाल' का जन्म सन् 1900 में कायथा (आगरा) में हुआ था। उनकी तीन रचनाएं अति प्रसिद्ध हैं 1. Colossole of Shramanabelgola and other Jain shrines of Deccan. 2. जैनबद्री के भगवान् बाहुबली तथा दक्षिण के अन्य जैन तीर्थ, 3. बाहुबली पूजा, एवं 4. दक्षिण के जैन वीर। श्री जिनेन्द्रप्रसाद जैन श्री जिनेन्द्र प्रसाद जैन टूंडला (सन् 1931) ने वैसे भौतिक शास्त्र में एम.एससी. की परीक्षा उत्तीर्ण की किन्तु लेखन-कार्य जैनधर्माधारित विषयों में करते हुए जैन समाज की दीर्घकाल तक सेवा की। वे कुशल वक्ता, नाटककार एवं कलाकार थे। उनकी निम्न रचनाएं प्रसिद्ध हैं 359 पावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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