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________________ 15. ब्रह्म. पं. गौरीलाल जी शास्त्री छद्मस्थ- वेश में ब्राह्मण विद्वानों से संस्कृत भाषा तथा जैन एवं जैनेत्तर ग्रन्थों का अध्ययन कर पाण्डित्य प्राप्त करने वाले पं. गौरीलाल जी शास्त्री ने मथुरा में दिगम्बर जैन महाविद्यालय की स्थापना कर उसे जैन- विद्या के अध्ययन का उच्च केन्द्र बनाया। अपनी शिक्षा को अपूर्ण मानकर उन्होंने मूडबिद्री (कर्नाटक) में जाकर धवल, महाधवल, जयधवल ग्रन्थों का अध्ययन - स्वाध्याय किया । सामाजिक प्रगति के लिये पद्मावती-परिषद् की स्थापना कर पद्मावती-पुरवाल नाम की पत्रिका का प्रकाशन कर उसका सम्पान किया । शास्त्री परिषद् की स्थापना कर उसकी 'जैन सिद्धान्त' नाम की पत्रिका का सुयोग्य सम्पादन किया । वि.सं. 1917 में आपका स्वर्गवास हो गया। पं. गोपालदास बरैया के जन्म के कारण बीसवीं सदी धन्य हो गई। इस सदी की विद्वत्परम्परा के वे युग-निर्माता थे। एक ओर उन्होंने विरोधियों द्वारा किये गये जैन सिद्धान्तों पर भ्रामक प्रहारों को कलकत्ता एवं काशी जैसी महानगरी के जजों एवं विद्वानों के साथ शास्त्रार्थों में अपने तथ्यपरक तर्कों एवं सन्दर्भों को प्रस्तुत कर उन्हें पराजित किया, तो दूसरी ओर जैन विद्वानों की एक ऐसी मण्डली तैयार की, जिसने जैन दर्शन, आचार एवं अध्यात्म का गहन अध्ययन किया और और अनेक दुरुह ग्रन्थों की जीर्ण-शीर्ण पाण्डुलिपियों का उद्धार, सम्पादन एवं प्रकाशन कर उन्हें सर्व-सुलभ बनाया। ग्रामों-ग्रामों, नगरों-नगरों में विद्यालयों की स्थापना की गई और विविध पाठ्यक्रमों का निर्माण कर विद्यालयों में उनके अध्ययन एवं विधिवत् परीक्षाओं की व्यवस्था की गई। विद्यावारिधि, स्याद्वाद - वाचस्पति एवं धर्म- दिवाकर जैसी उपाधियों से सम्मानित पं. खूबचन्द्र जी शास्त्री (बेरनी, एटा, सन् 1889 ) का नाम उक्त विद्वत्परम्परा में अग्रगण्य है। इनकी प्रतिभा, सच्चरित्रता एवं भद्रता से पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 346
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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