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________________ थे। ऐलक' पद की दीक्षा लेकर आम जनता के लिए वे सरस उपदेशामृत का पान कराते रहे। 11. क्षुल्लिका प्रभावती जी इनका जन्म अहारन (आगरा) में सन् 1929 में हुआ। ये अपनी विद्वता, कठोर-साधना एवं अपने सरस प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध रहीं। 12. ब्रह्म.वासुदेव जी (पिलुआ, वि.सं. 1852-2018) जिन्होंने 200 बार शिखर जी की वन्दना की तथा बंगाल एवं आसाम में घूम-घूम कर गरीबों में औषधि दान दिया। 13. ब्रह्म. पाण्डेय श्री निवास जी (फिरोजाबाद) इनका जन्म वि.सं. 1859 में फिरोजाबाद यू.पी. में हुआ। आपने पं. घूरीलाल जी शास्त्री से धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन किया। उच्च शिक्षा के ग्रहण में वे पं. माणिकचन्द्र जी न्यायाचार्य के बाद न्याय-दिवाकर पं. पन्नालाल जी के अन्यतम शिष्य रहे। आचार्य शान्तिसागर जी की दीर्घकाल तक वैय्यावृति करने का उन्हें सौभाग्य मिला था। फिरोजाबाद की नसिया स्थिति जैन-कॉलेज एवं जैन-मन्दिर के निर्माण में इनका प्रमुख हाथ था। ब्रह्म. पं. गणेशप्रसादजी वर्णी से सप्तम प्रतिमा धारण करने के बाद उनका अधिकांश समय पं. गणेश वर्णी दिगम्ब जैन उदासीनाश्रम ईसरी बाजार (बिहार) में व्यतीत हुआ। 14. ब्रह्म. सुरेन्द्रनाथ जी (वि.सं. 1882) कलकत्ता की जैन समाज की विशेष प्रार्थना पर वहां समाज में नव-जागरण किया। तत्पश्चात् उदासीनाश्रम ईसरी बाजार में धार्मिक जीवन व्यतीत करते रहे। 845 पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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