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________________ 12. कृपण जगावन चरित्र (लेखनकाल 1671), 3. विवेक- चउपइ, 4. ज़लगालन-विधि, 5. शमोशरण, 6. हिन्दी - अष्टक, 7. नित्य-नियम-पूजा के अनूठे छन्द, एवं, 8. मथुरावाद - पच्चीसी । उक्त सभी ग्रन्थों की भाषा समकालीन ब्रजभाषा है। आधुनिक काल आधुनिक काल तो पद्मावति-पुरवाल समाज का न केवल अपना, अपितु, समग्र जैन समाज के नव-जागरण, किंवा श्रमण-संस्कृति एवं जैन- विद्या के विकास की दृष्टि से उनके इतिहास का स्वर्णिम अध्याय ही सिद्ध हुआ है। क्योंकि इस काल में उसने अनेक प्रभावक, आचार्य, मुनि, ऐलक, क्षुल्लक, आर्यिकाएं, प्रकाण्ड विद्वान, सैकड़ों कवि, लेखक, समीक्षक, पत्रकार, सम्पादक, शिक्षक, प्रशासक, समाज-सुधारक एवं सामाजिक नेता, राष्ट्रभक्त, स्वतन्त्रता सेनानी एवं श्रमण-संस्कृति के प्रचारकों को जन्म दिया। यदि इन सभी का सम्रग परिचय दिया जाय, तो मेरी दृष्टि से लगभग 500-500 पृष्ठों के कई खण्ड तैयार किये जा सकते हैं । किन्तु यहां तो स्थानाभाव के कारण सूत्र - शैली में ही कुछ इतिहास - निर्माताओं का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है। 841 पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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