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________________ के पश्चात् घर में जगह की कमी के कारण शिवाजी पार्क, शाहदरा रहने लगे और वहीं पर उन्होंने बिजली के तार बनाने का काम किया। बाकी तीनों पुत्र चश्मे के अपने पुश्तैनी काम को करते हैं। श्री अजयकुमार जी जैन ने धर्मपुरा में अलग मकान और दुकान कर ली। पुराने मकान और दुकान पर उनके छोटे पुत्र सर्वश्री हरिश्चन्द्र और श्री विजयकुमार हैं। 2003 में श्री भागचन्द जी का स्वर्गवास हो गया। 2004 में श्री भागचन्द जी के दूसरे पुत्र श्री अजयकुमार का भी स्वर्गवास हो गया। उनके कार्य को उनके पुत्र आदित्य जैन आदि करते हैं। श्री विजय कुमार जी प्रतिदिन मंदिर जी जाते हैं। पिछली कार्यकारिणी में वह मंदिर प्रबंधक रहे हैं। पूरे परिवार में संगठन, सम्पन्नता और धर्मिक आस्था है। स्व. पंडित गुणधरलालजी एटा जिले के उड़ेसर जनपद के गुणधर नामक एक पढ़े लिखे युवक 1925-26 में दिल्ली आये। यहां आकर स्वतंत्र शिक्षक के रूप में उन्होंने बच्चों को भौतिक और धार्मिक शिक्षा दी। आय का समुचित साधन हो जाने पर यथासमय विवाह हुआ। वे धार्मिक प्रवृत्ति के सरल स्वभावी व्यक्ति थे। पंचायत के प्रति भी उनका लगाव था। 1959 में उनका स्वर्गवास हो गया। पं. गुणधरलाल जी के बड़े पुत्र श्री जय प्रकाश जी रेलवे बोर्ड से 1990 में सेवानिवृत्त हुए और 2000 में उनका स्वर्गवास हो गया। श्री जयप्रकाशजी. के सर्वश्री सत्येन्द्र कुमार और अचल कुमार पुत्र हैं। पंडितजी के दूसरे पुत्र श्री वीरेन्द्र कुमार अविवाहित थे और वह किसी साधु संघ में चले गये। उनके तृतीय पुत्र श्री जितेन्द्र कुमार ने गिरिडीह में जाकर एक स्कूल स्थापित किया और वहां शिक्षक के रूप में और बाद में स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम किया। 1988 में उनका स्वर्गवास हो गया। उनके पुत्र पद्मावतीपुस्खाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 249
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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