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________________ . . . स्व. श्री भागचन्दजी/दानचन्दजी चश्मे वाले अलीगढ़ निवासी श्री धन्नालाल रिश्ते में लगने वाले अपने भाई श्री पुत्तूलाल जी जो मूल रूप से उड़ेसर के थे और दिल्ली में रह रहे थे, उनकी प्रेरणा पर अपने परिवार के साथ 1932-33 में दिल्ली आये। यहां आकर उन्होंने श्री पुत्तूलाल जी के साथ ही काम किया। श्री धन्नालाल जी की पत्नी दूसरे पुत्र (दानचन्द) को जन्म के थोड़े समय बाद स्वर्ग सिधार गई। श्री धन्नालाल जी के बड़े पुत्र श्री भागचंद और छोटे पुत्र श्री दानचन्द जी व श्री धन्नालाल जी की देखभाल और पालन पोषण रिश्ते में लगने वाली उनकी विधवा बहन श्रीमती चमेली देवी ने की। भागचन्द ने बिना पूरी पढ़ाई के ही छोटा मोटा व्यवसाय करना शुरू कर दिया। 42-43 में उनका विवाह हो गया। श्री दानचन्द जी ने शिक्षा पूरी करने के बाद अध्यापक के रूप में आजीविका प्रारम्भ की। इसी बीच श्री भागचन्द जी ने चांदनी चौक में चश्मे बनाने वाली एक दुकान पर नौकरी कर ली। 1954 में उन्होंने नौकरी छोड़कर चश्मे बनाने का अपना ही काम प्रारम्भ कर दिया। इधर श्री दानचन्द जी भी स्कूल के बाद अपना सारा समय भाई के साथ काम में लगाने लगे। परिणामस्वरूप व्यापार काफी आगे बढ़ा। इसी बीच श्री दानचन्द जी का विवाह हो गया। श्री दानचन्द जी कर्त्तव्य परायण और शालीन व्यक्ति थे। 1987 में एक दुर्घटना मे उनका स्वर्गवास हो गया। उनके पुत्र श्री अनिल जैन जो शाहदरा में रहते और तार बनाने का वहीं काम करते हैं। श्री भागचन्द जी शारीरिक रूप से शिथिल होने पर भी बड़े मेहनती और खरे स्वभाव के आदमी थे। मंदिर जी में नितप्रति जिनेन्द्रदेव का प्रक्षालन और पूजन करते थे। चश्मे बनाने का व्यवसाय करने वालों के बीच उनकी अच्छी धाक थी। काफी समय तक वे पंचायती मंदिर के प्रबंधक और कोषाध्यक्ष रहे। उनके बड़े पुत्र श्री वीरेन्द्र कुमार जी विवाह पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 248
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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